देशभर के सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण संयुक्त बयान जारी कर न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा की जोरदार अपील की। यह बयान मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाने के राजनीतिक प्रयासों की तीखी निंदा करते हुए जारी किया गया है।
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि कुछ सांसदों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा जस्टिस स्वामिनाथन के खिलाफ महाभियोग की पहल न्यायिक संस्थानों पर दबाव बनाने की खतरनाक कोशिश है। उनके अनुसार, यह न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चोट पहुंचाता है बल्कि लोकतंत्र की जड़ें भी कमजोर करता है। बयान में कहा गया कि महाभियोग जैसे गंभीर संवैधानिक प्रावधान का उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही होना चाहिए, लेकिन वर्तमान प्रयास केवल राजनीतिक या वैचारिक असहमति के आधार पर न्यायाधीशों पर दबाव बनाने जैसा है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
पूर्व जजों ने इमरजेंसी के समय की घटनाओं का उल्लेख करते हुए चेतावनी दी कि जब न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव बढ़ता है तो लोकतंत्र को गंभीर क्षति होती है। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे केशवानंद भारती फैसले के बाद तीन वरिष्ठतम जजों के लिए सुपरसेशन चलाया गया था और जस्टिस एचआर खन्ना को एडीएम जबलपुर मामले में असहमति दर्ज करने पर साइडलाइन कर दिया गया था।
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि जब भी अदालतें ऐसे फैसले देती हैं जो किसी राजनीतिक वर्ग को पसंद नहीं आते, तब न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान, धमकी और आरोप लगाए जाते हैं। उन्होंने 2018 में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रयास तथा सीजेआई रंजन गोगोई, एसए बोबडे और डी वाई चंद्रचूड़ पर लगातार हमलों का उदाहरण दिया।
बयान में कहा गया कि यह उचित न्यायिक आलोचना नहीं, बल्कि महाभियोग और सार्वजनिक बदनामी को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला है। जस्टिस स्वामिनाथन के खिलाफ कार्रवाई को इसी लंबी श्रृंखला का हिस्सा बताया गया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान में महाभियोग की व्यवस्था न्यायाधीशों की निष्पक्षता और ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए है, न कि उन्हें राजनीतिक दबाव में झुकाने के लिए।
पूर्व जजों ने सभी संसदीय दलों, वकीलों, सिविल सोसायटी और देशवासियों से अपील की कि इस प्रयास को तुरंत खारिज किया जाए। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश संविधान और अपनी शपथ के प्रति जवाबदेह हैं, न कि राजनीतिक अपेक्षाओं के प्रति। यह बयान पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस आदर्श गोयल, जस्टिस हेमंत गुप्ता, कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और विभिन्न उच्च न्यायालयों के कुल 56 पूर्व जजों के हस्ताक्षर के साथ जारी किया गया।
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रमुख नामों में जस्टिस एनरसिम्हा रेड्डी, जस्टिस पीबी बजंथरी, जस्टिस सुब्रो कमल मुखर्जी, जस्टिस परमोड कोहली, जस्टिस एसएन धिंगरा, जस्टिस राकेश सक्सेना, जस्टिस विनीत कोठारी समेत कई वरिष्ठ न्यायविद शामिल हैं।

