December 13, 2025
National

800 साल पुराना शिवालय, जहां उल्टी दिशा में लिखी है रामायण, चमकीले खंभों पर उत्कीर्ण 140 महाकाव्य कथाएं

An 800-year-old Shiva temple with the Ramayana written backwards, 140 epic tales engraved on shiny pillars.

भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जो सिर्फ भक्ति का ही नहीं, बल्कि कला, इतिहास और शांति का भी केंद्र हैं। कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले से मात्र 67 किमी दूर, भद्रा नदी के किनारे बसे छोटे-से गांव अमृतपुरा में चालुक्य साम्राज्य वास्तुकला का अनमोल रत्न अमृतेश्वर मंदिर है।

होयसल वंश ने अपने राज में इसे बनवाया था, जो अब कर्नाटक की आर्किटेक्चरल विरासत की एक पहचान बन गया है। 1196 ईस्वी में बना यह शिव मंदिर न सिर्फ भक्तों को आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि पर्यटकों को 800 साल पुरानी नक्काशी और पत्थरों पर लिखे महाकाव्यों की ऐसी दुनिया दिखाता है, जिसे देखते ही वे हैरत में पड़ जाते हैं।

अमृतेश्वर मंदिर का निर्माण होयसल सम्राट वीरा बल्लाल द्वितीय ने करवाया था, जो न सिर्फ भगवान शिव को समर्पित है, बल्कि उस दौर की कला, शिल्प और आध्यात्मिकता का दस्तावेज भी है। होयसल शैली में बना यह मंदिर बाहर से जितना सुंदर है, अंदर से उससे भी ज्यादा खूबसूरत है। मंदिर की बाहरी दीवारें गोलाकार डिजाइन्स और नक्काशी से ढकी हैं। सामने बंद मंडप और फिर विशाल खुला मंडप है। दोनों ही चमकदार खराद वाले स्तंभों पर टिके हैं। इन चमकीले स्तंभों को देखकर कोई विश्वास नहीं कर सकता कि ये 800 साल से ज्यादा पुराने हैं।

सबसे अनोखी बात मंदिर की बाहरी दीवारों पर बनी 140 महाकाव्य कथाएं हैं। दक्षिण की दीवार पर रामायण के 70 दृश्य एंटी क्लॉकवाइज (उल्टी दिशा में) उकेरे गए हैं, जबकि उत्तर की दीवार पर 25 पैनल भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं और शेष 45 पैनल महाभारत की घटनाओं को सुंदर नक्काशी के माध्यम से दिखाते हैं। मानो पूरा महाकाव्य पत्थरों पर लिख दिया गया हो।

जानकारी मिलती है कि होयसल कला के शिल्पकार मल्लितम्मा ने यहीं अपनी कला की शुरुआत की थी और यही मंदिर होयसल स्वर्ण युग का पहला अध्याय माना जाता है। गर्भगृह में नेपाल की कांदकी नदी से लाया गया प्राचीन त्रिमूर्ति शिवलिंग विराजमान है, बगल में मां शारदा सुशोभित हैं।

इसके साथ ही दीवारों पर शेर से लड़ता योद्धा, शिखर पर कीर्तिमुख, छोटे-छोटे टावर और गजसुर वध का दृश्य भी उत्कीर्ण है। छतों पर फूलों वाले डिजाइन और खंभों पर नक्काशी है। शांत वातावरण, भद्रा नदी का कल-कल, और दूर तक फैली हरियाली पर्यटकों को आकर्षित करती है। मंदिर में बिल्व अर्चना और कुमकुम अर्चना विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

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