चंडीगढ़, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने बुधवार को स्वयंभू संत और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को दी गई पैरोल सुविधा के दुरुपयोग की निंदा की। शिअद ने दोषी करार दिए गए बलात्कारी को हरियाणा सरकार द्वारा राज्य-स्तर के कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाने को न्यायिक प्रक्रिया के लिए एक चुनौती बताया। पार्टी ने यह भी मांग की कि राम रहीम को पश्चिम बंगाल जैसे गैर-भाजपा शासित राज्य की जेल में भेज दिया जाना चाहिए।
अकाली दल पंथिक सलाहकार बोर्ड की यहां हुई बैठक में पार्टी ने कहा कि हरियाणा सरकार के शीर्ष पदाधिकारी जिस तरह से राम रहीम का सम्मान कर रहे हैं, उससे नागरिक समाज में गलत संदेश गया है। आगे कहा गया, “मुख्यमंत्री के विशेष कार्य अधिकारी और भाजपा सांसद जैसे राज्य सरकार के अधिकारियों को बलात्कारी और हत्यारे को राज्य स्तर के कार्यक्रमों में आमंत्रित करना शोभा नहीं देता।”
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता में सलाहकार बोर्ड की हुई बैठक में कहा गया, “राम रहीम के खिलाफ कई आपराधिक मामले अभी भी लंबित हैं, फिर भी हरियाणा सरकार उसे वीवीआईपी मान रही है और उसे अपना पूरा समर्थन दे रही है।” पार्टी ने कहा, “ऐसी
स्थिति में संभावना है कि अपने खिलाफ दर्ज मामलों में वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है। इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए राम रहीम को उत्तर भारत से दूर एक गैर-भाजपा राज्य पश्चिम बंगाल भेज दिया जाना चाहिए।
बोर्ड ने इस बात का भी जिक्र किया कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा बंदी सिंहों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए शुरू किए गए हस्ताक्षर अभियान को भारी प्रतिक्रिया मिल रही है।इसने कहा कि सिख इस बात से परेशान थे कि राम रहीम को बार-बार पैरोल मिल रही है, लेकिन सिख बंदियों को 28 साल से पैरोल की सुविधा नहीं दी जा रही है। एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि संस्था ने पहले ही 12 लाख हस्ताक्षर एकत्र कर लिए हैं और बंदी सिंहों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए और उनकी रिहाई की मांग वाले पत्र पर 25 लाख हस्ताक्षर जुटाए जाने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समाज के सभी वर्गो के लोगों से संपर्क कर अभियान को और व्यापक बनाया जाएगा। बोर्ड ने इस बात पर भी गौर किया कि अल्पसंख्यकों को मान्यता देने के नियमों में बदलाव के प्रयास किए जा रहे हैं। इसने कहा कि अगर ऐसा किया जाता है, तो सिख पंजाब में संस्थानों में अल्पसंख्यक दर्जे के तहत आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाएंगे, इसके अलावा विभिन्न सरकारी योजनाएं जो समुदाय को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेंगी। इस मुद्दे को हल करने के लिए एक पैनल बनाने का फैसला किया गया।
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