केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को कहा कि पंजाब विधानसभा में वीबी-जी राम जी अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव लाने का कदम “अलोकतांत्रिक और संविधान की मूल भावना के खिलाफ” था, जो “अंध विरोध” की राजनीति को दर्शाता है। भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए चौहान ने कहा कि संसदीय कानूनों का पालन करना राज्यों का संवैधानिक दायित्व है।
एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए चौहान ने आरोप लगाया कि पंजाब में एमजीएनआरईजीए समेत कई योजनाओं में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार सामने आया है। उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही गबन की गई रकम बरामद की गई।” उन्होंने दावा किया कि पंजाब की 13,304 पंचायतों में से केवल 5,915 पंचायतों में ही सामाजिक लेखापरीक्षा की गई है।
चौहान ने आगे कहा, “रिपोर्ट में वित्तीय गबन के लगभग 10,653 मामलों का जिक्र है, लेकिन इनमें से किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।” उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व एमजीएनआरईजीए के तहत अनुमत न होने वाली गतिविधियों पर अनियमित व्यय किया गया था। उन्होंने कहा कि मजदूर शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है।
चौहान ने आगे कहा, “भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता, पकड़े जाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती, और दूसरी ओर विधानसभा में संसदीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की बातें होती हैं। यह एक अलोकतांत्रिक मानसिकता है, जिसकी मैं निंदा करता हूं।”
चौहान ने कहा कि यह प्रस्ताव “अंध विरोध” की राजनीति को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग लोकतंत्र या संवैधानिक मर्यादा का कोई लिहाज किए बिना, केवल विरोध करने के लिए विरोध करते हैं। यदि कोई कानून संसद द्वारा बनाया जाता है, तो विधानसभा में उसके विरुद्ध प्रस्ताव पारित करना हमारे संवैधानिक ढांचे की भावना के विरुद्ध है।” चौहान ने पूछा कि क्या पंचायतों द्वारा राज्य कानूनों के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करना उचित होगा?

