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यूपी में अपने सितारे चमकाने के लिए फिल्मी सितारों को आजमा रहे सभी दल

All parties are trying film stars to shine their stars in UP

लखनऊ, 8 अप्रैल । उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिल्मी सितारों की धमक से लोकतंत्र को नई ऊंचाई मिलने लगी है। चाहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हो या समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस, हर पार्टी में सिने अभिनेता और अभिनेत्री अपने अपने भाग्य आजमाते रहे हैं और कुछ तो अभी आजमा भी रहे हैं।

राजनीति में इनके पदार्पण ने लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की है। अभिनेता से नेता बने कलाकारों में हिंदी और भोजपुरी दोनों क्षेत्र के कलाकार हैं।

भोजपुरी के दिग्गज कलाकार रवि किशन शुक्ला हों या आजमगढ़ से सांसद दिनेश लाल निरहुआ, या फिर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां हेमा मालनी और काजल निषाद तथा अभिनेता से नेता बने कांग्रेस के दिग्गज (अब नेता) राजबब्बर, सबने खूब भीड़ जुटाई है।

इस लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने यूपी से दो दिग्गज भोजपुरी स्टार रवि किशन को गोरखपुर से और आजमगढ़ से दिनेश लाल निरहुआ को उम्मीदवार बनाया है। बॉलीवुड में बड़ा नाम हेमा मालिनी का मथुरा लोकसभा सीट से लगातार कई चुनावों से उम्मीदावार होना भी इसका जीता जागता उदाहरण है।

इतना ही नहीं, रामानंद सागर के रामायण’ में श्रीराम का किरदार अदा करने वाले अरुण गोविल भी चुनावी समर में उतर चुके हैं और मेरठ लोकसभा क्षेत्र से चुनावी योद्धा बनकर न सिर्फ राजनीति में पदार्पण कर चुके हैं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और स्वस्थ राजनीति के गवाह बनने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं।

भोजपुरी अभिनेता रवि किशन गोरखपुर से पहले ही अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर चुके हैं। वर्ष 2014 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले रवि किशन शुक्ला ने वर्ष 2014 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर अपने गृह जनपद जौनपुर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन उनकी राजनीतिक इच्छा और बलवती हुई तथा वर्ष 2017 में भाजपा का दामन थामा और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में संसद तक का सफर तय किया।

भोजपुरी फिल्मी दुनिया के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले रवि किशन शुक्ला पर भाजपा ने एक बार फिर दांव लगाया है।

इधर, इंडिया गठबंधन ने शुक्ला के खिलाफ टीवी कलाकार काजल निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है।

भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ने 2019 में भाजपा के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। भाजपा के टिकट पर उन्होंने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा। तब वह हार गए थे। 2022 के चुनाव में अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव लड़ा और लोकसभा सीट छोड़ दी। उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ और निरहुआ ने अखिलेश के भाई और सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को हरा दिया। 2024 में उनका सामना एक बार फिर सपा मुखिया अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव से ही है।

वरिष्ठ अभिनेत्री हेमा मालिनी उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा चुनाव से तीसरी बार मैदान में हैं। वह लगातार दो बार यहां से सांसद रह चुकी हैं। हेमा मालिनी भले ही फिल्मी दुनिया में अब न दिख रही हों, लेकिन वह राजनीति में काफी सक्रिय हैं। अभिनेत्री के रूप में हेमा मालिनी को दर्शकों ने पसंद किया है।

रामानंद सागर के दूरदर्शन पर प्रसारित हुए शो ‘रामायण’ में श्रीराम का किरदार अदा कर अरुण गोविल ने घर-घर में अपनी पहचान बनाई। सालों तक इसी किरदार के साथ जीने वाले अरुण गोविल ने अपना राजनीतिक करियर भाजपा से शुरू किया है। भाजपा ने उन्हें मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काट कर अपना उम्मीदवार बनाया है। शुरुआती दौर में उन्होंने कई फिल्मों में साइड हीरो का किरदार निभाया और फिर राजश्री प्रोडक्शन ने अरुण गोविल को फिल्म ‘सावन को आने दो’ में ब्रेक दिया। धारावाहिक ‘रामायण’ में राम की भूमिका में लोगों ने अभिनेता को काफी पसंद किया। आलम ये था कि लोग उन्हें असल में भगवान राम मानने लगे।

भाजपा की वरिष्ठ नेता और मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ धारावाहिक में ‘तुलसी’ का किरदार निभाकर हर घर में लोकप्रिय हो गईं। वे उन चंद कलाकारों में शामिल हैं जिन्होंने अपनी स्क्रीन लोकप्रियता को राजनैतिक सफलता में बदल दिया। हालांकि अब वो टीवी की दुनिया से अलग एक बड़ी राजनेता के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने 2019 के चुनाव में अमेठी से कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को हरा कर सबको चौंका दिया था। वह अपने क्षेत्र अमेठी में लगातार सक्रिय हैं। भाजपा ने उन्हें एक बार फिर अमेठी से ही अपना प्रत्याशी बनाया है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि पिछले कुछ सालों से देखने को मिला है कि फिल्मी कलाकार अपनी राजनीतिक राय खुलेआम देने से हिचकते नहीं है। इसके पहले उनकी लोकप्रियता के आधार पर टिकट दिया जाता था। चाहे विनोद खन्ना हों, धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा हों, लेकिन उसके बाद देखने को मिला कि जिस प्रकार से पॉलिटिकल फिल्में बनने का चलन शुरू हुआ, जो लोग उन फिल्मों में रहते हैं वो लोग राजनीति से प्रेरित बयान ऑफ द स्क्रीन भी देते हैं। चाहे वो विवेक अग्निहोत्री हों, कंगना रनौत हों या फिर अनुपम खेर। उनकी फिल्मी अपील और राजनीतिक झुकाव उनको एक आइडियल उम्मीदवार बनाता है।

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