राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा सरकारी पीजी कॉलेज में कथित धोखाधड़ी के लिए पूर्व और वर्तमान प्रिंसिपल, तीन एसोसिएट प्रोफेसर और चार विक्रेताओं सहित 10 व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने के कुछ दिनों बाद, प्रिंसिपल ने दावा किया कि शिकायतकर्ता द्वारा “द्वेष” को दूर करने के लिए ‘भ्रामक तथ्य’ प्रस्तुत किए गए थे।
प्राचार्य डॉ. देस राज बाजवा ने कहा कि शिकायतकर्ता रमेश सिंह के आरोप निराधार हैं और कॉलेज तथा संकाय की छवि धूमिल करने का प्रयास हैं। उन्होंने दावा किया, “शिकायतकर्ता कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे और उनका ‘प्रशासनिक आधार’ पर तबादला कर दिया गया था। उनके खिलाफ शिकायतों का एक लंबा इतिहास रहा है। उनके तबादले के बाद, शिकायत में नामित संकाय सदस्यों और प्राचार्यों ने अपनी जाँच रिपोर्टों में उनके खिलाफ सिफारिशें की थीं, जिससे नाराजगी दूर करने के लिए ये आरोप लगाए गए। सरकार ने पहले भी उन पर नैतिक पतन के मामलों में आरोप लगाए थे और उन्हें दंडित किया था।”
उन्होंने कहा, “2021 में उन्होंने तत्कालीन प्रिंसिपल और संकाय सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, लेकिन बाद में शिकायत वापस ले ली थी, यह दावा करते हुए कि शिकायत ‘भ्रम’ में की गई थी।”
प्रिंसिपल ने तथ्यान्वेषी समिति और उसकी रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए और कहा कि समिति का कोई भी सदस्य तथ्यों की पुष्टि करने के लिए कॉलेज नहीं आया और बिना उचित जाँच के ही सिफारिशें कर दीं। उन्होंने कहा, “कुछ लोगों के निहित स्वार्थों के कारण, जो मेरे प्रिंसिपल का पदभार ग्रहण करने से खुश नहीं थे, यह जाँच पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई। जीएसटी चोरी और ख़रीदारी में सरकारी निर्देशों का पालन न करने के आरोप निराधार हैं क्योंकि सभी ख़रीदारी उच्च अधिकारियों से प्राप्त अनुमोदन के अनुसार की गई थीं।”
अनधिकृत निर्माण और सुरक्षा उल्लंघनों के आरोपों के बारे में उन्होंने कहा कि विकास कार्य उच्च अधिकारियों की अनुमति के बाद ही किए गए थे। उन्होंने कहा, “हम जाँच एजेंसी के साथ सहयोग करेंगे और शिकायत को उच्च न्यायालय में चुनौती भी देंगे।”

