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अमृतधारी सिख को मेट्रो में जाने से रोका, हरमीत सिंह कालका ने अमित शाह पत्र लिखकर की कार्रवाई की मांग

Amritdhari Sikh stopped from going in metro, Harmeet Singh Kalka wrote letter to Amit Shah demanding action

नई दिल्ली, 29 नवंबर । केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के जवानों ने नई दिल्ली में झिलमिल मेट्रो स्टेशन पर एक अमृतधारी सिख को कृपाण के साथ मेट्रो ट्रेन के अंदर जाने से रोक दिया। इस पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने एतराज जताया है। उन्होंने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है।

हरमीत सिंह कालका ने पत्र में इस घटना को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए कहा कि यह अमृतधारी सिख के मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। सिख धर्म में प्रत्येक अमृतधारी सिख के लिए हर समय सिख धर्म की वस्तुएं कड़ा, कंघा, कृपाण, कशेरा और केश रखना अनिवार्य है।

उन्होंने लिखा, “हाल के दिनों में यह पहली बार नहीं है कि किसी अमृतधारी सिख यात्री को रोका गया हो। भारतीय कानून एक अमृतधारी सिख को कृपाण (जिसका ब्लेड छह इंच से लंबा और कुल लंबाई नौ इंच से अधिक न हो) धारण करने की अनुमति देता है। यह घटना भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में निहित अनुच्छेद 25 का घोर उल्लंघन है जो देश के प्रत्येक नागरिक को धर्म और आस्था की स्वतंत्रता देता है।”

उन्होंने पत्र में कहा है, “सिखों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, आपसे अनुरोध है कि मामले की जांच का आदेश दिया जाए और दोषी सीआईएसएफ कर्मियों को भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक भारतीय को दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए नियमों के अनुसार दंडित किया जाए।”

इससे पहले हरमीत सिंह कालका ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा था, “मैं नई दिल्ली के झिलमिल मेट्रो स्टेशन पर हुई घटना की कड़ी निंदा करता हूं, जहां एक अमृतधारी सिख को ‘सिर्फ कृपाण ले जाने’ के कारण प्रवेश से वंचित कर दिया गया। ऐसी हरकतें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत संवैधानिक अधिकारों की घोर अवहेलना करती हैं, जो सिख समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।”

उन्होंने पोस्ट में लिखा था कि यह सिख सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं के प्रति लोगों में जागरूकता और संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। यह महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा प्रोटोकॉल इन स्वतंत्रताओं का सम्मान करने, समावेशिता और समझ को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किए गए हों। ऐसी घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता या हल्के में नहीं लिया जा सकता है।

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