बीजिंग, पानी पर सरपट तैरती लंबी-लंबी रंग-बिरंगी नौकाएं, नौकाओं को आगे बढ़ाते दोनों तरफ से चप्पू चलाते उत्साही दल, अपने दल की हौसलाअफजाई करता एक चीयर लीडर और फिनिश लाइन पार करने के लिए गति, जोश, जुनून और जीतने का जज़्बा, ये सभी भावनाएं हर साल चीन में आयोजित होने वाले परंपरागत त्यौहार ड्रेगन बोट फेस्टिवल में देखने को मिलती है।
भारत में जिस समय आषाढ़ माह की अमावस्या आती है, उसी दौरान चीन में 24 सौरावधियों में से दसवीं सौरावधि का आगमन होता है जिसे श्याची कहा जाता है यानी ग्रीष्मकाल अयनांत या अत्याधिक गर्मी। इसके बाद प्रारंभ होता है चीन के कैलेंडर का पांचवां महीना –वूयूए- और उसके पांचवें दिन हर वर्ष आयोजित होने वाली इस प्रतिस्पर्धा को लेकर देश भर के लोग रोमांचित रहते हैं। इस उत्सव की तारीख को ‘डबल फिफ्थ’ भी कहा जाता है। इस वर्ष ये तारीख 22 जून को है। इस दौरान ना केवल नौकाओं को बिजली की गति देने वाले नाविक बल्कि इस रेस को देखने वाले दर्शक भी काफी रोमांचित रहते हैं। इस रेस को देखने के लिए कई पर्यटक भी उसी उत्साह के साथ जुटते हैं।
सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि सिंगापुर और मलेशिया में भी इस त्योहार को उत्साह के साथ मनाया जाता है। ये त्योहार एकता और एकजुटता की ताकत का भी संदेश देता है। साथ ही टीम वर्क में हर कार्य को किस तरह से सफलता के साथ अंजाम दिया जा सकता है ये सबक इस त्योहार से बखूबी सीखने को मिलता है।
माना जाता है कि चीन में मुख्य रुप से “पारंपरिक चीनी ड्रैगन नौकाओं का गृहनगर” दक्षिण चीन में स्थित क्वांगतौंग राज्य का क्वांगचौ शहर है और इस शहर में ड्रैगन बोट संस्कृति और पर्यटन उद्योग के विकास को आपस में जोड़ कर रखा हुआ है। साथ ही वर्ष के इस महीने में आंगतुकों का आगमन भी बढ़ जाता है। इस त्योहार पर ज़ोंगज़ी यानी राइस डंपलिंग खाने का भी रिवाज है। पूरे देश में इस त्योहार
पर छुट्टी होती है और उत्साह एवं स्फूर्तिपूर्ण माहौल समाज में दिखाई पड़ता है।
चाहे इस उत्सव के जरिए हज़ारो वर्षों पुरानी परंपरा को निभाया जा रहा हो लेकिन मौजूदा दौर में भी इसका आकर्षण खत्म नहीं हुआ है। समाज का हर वर्ग और हर उम्र के लोग इस उत्सव को मनाने में पीछे नहीं रहते हैं। चीन में हरेक पारंपरिक उत्सव को कैलेंडर के हिसाब से रखा गया है और कैलेंडर में बदलाव का सीधा संबंध मौसम में बदलाव से होता है। वर्ष के इस महीने में गर्मी का अत्याधिक ताप
रहता है, जिसकी वजह से ये गर्मी मनुष्यों को पानी के करीब और नदी नहरों में खेल खेलने को प्रेरित करती है। इसी वजह से वर्ष के इस समय ड्रैगन बोट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है।
भारत के केरल राज्य में भी हर वर्ष ओणम के त्यौहार पर इसी तरह की बोट रेस देखने को मिलती है, जिसे कल्लम वली कहा जाता है। केरल की बोट रेसों की नावों की लंबाई 100 से 120 फीट होती है और
इसे करीब 64 से 128 लोगों चलाते हैं। इस रेस में भी फसल पकने की खुशी, एकजुटता और टीम वर्क के साथ उत्सव मनाने का रोमांच और जीवन के कई रंग देखने को मिलते हैं। इसके माध्यम से कहीं ना कहीं पूरब की संस्कृतियों और उत्सवों में एक रुपता झलकती है।