लखनऊ, 25 दिसंबर । भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गोरखपुर से खास रिश्ता था। मसलन, आगरा की बाह तहसील स्थित बटेश्वर उनकी मातृभूमि थी। पिता की नौकरी के नाते बचपन ग्वालियर में गुजरा। कानपुर से उन्होंने पढ़ाई की तो लखनऊ को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। लेकिन गोरखपुर से उनका रिश्ता खास था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर से उनका रिश्ता खास होने की वजह थी यहां बड़े भाई प्रेम वाजपेई की ससुराल का होना।
इस शादी में वह 1940 में सहबाला बनकर आए थे। मां की मौत के बाद वह ग्वालियर की जगह गोरखपुर आना ही पसंद करते और लंबे समय तक रुकते थे। राजनीतिक व्यस्तता बढ़ने के साथ ही यह सिलसिला कम होता गया।
दरअसल अटलजी के बड़े भाई प्रेम वाजपेयी की ससुराल गोरखपुर के आर्यनगर या अलीनगर स्थित माली टोला में रहने वाले स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित का घर है। 84 साल पहले वह बड़े भाई की शादी में सहबाला बनकर गोरखपुर आए थे। ड्रेस थी, हाफ पैंट और शर्ट। दीक्षित परिवार के ड्राइंग रूम में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित के साथ लगी अटलजी की एक तस्वीर भी इस रिश्ते की गवाह है।
जब तक राजनीति में अटलजी बहुत व्यस्त नहीं हुए तब तक उनका गोरखपुर आना-जाना होता था। खासकर मां कृष्णा देवी की मृत्यु के बाद गर्मियों की छुट्टियों में वह गोरखपुर आना ही पसंद करते थे। लिहाजा दीक्षित परिवार के पास उनकी यादों का पुलिंदा है। अब न अटलजी रहे, न यादों को सुनाने वाले अधिकांश लोग। बावजूद उनसे जो सुन रखा है उसके मुताबिक उम्र में अटल जी से कुछ ही छोटे स्वर्गीय कैलाश नारायण दीक्षित (इंजीनियर) और सूर्यनारायण दीक्षित (पूर्व विभागाध्यक्ष वनस्पति शास्त्र विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय) के साथ अटल जी ने अपने नौजवानी के तमाम दिनों को गुजारा था।
गोरखपुर में उनके ड्राइंग रूम में एक बुजुर्ग सज्जन के साथ युवा अटल की तस्वीर देख इस रिश्ते का पता तो चल गया था, पर बहुत डिटेल में जानने की जिज्ञासा तब हुई जब एक बार अटलजी ने गोरखपुर गोलघर स्थित महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित एक सभा में अपने चिरपरिचित अंदाज में बोल दिया कि गोरखपुर से मेरा बेहद खास रिश्ता है, तब इस रिश्ते की थोड़ी बहुत चर्चा हुई। 1998 में जब अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने तब उस परिवार से अपने रिश्ते और एक पत्रकार होने के नाते मैंने इसकी व्यापक पड़ताल की। तो मुझे संस्मरणों का यह खजाना मिला।
पंडित मथुरा प्रसाद की पांच बहनों शांति, रामेश्वरी, सावित्री, पुष्पा व सरोज में से रामेश्वरी उर्फ विट्टन का विवाह अटलजी के बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी के साथ हुआ था। एक बार रिश्ता कायम होने के बाद अटलजी का यहां अक्सर आना जाना होता था। चूंकि दोनों दीक्षित बंधु (कैलाश नारायण व सूर्य नारायण) लगभग उनके हम उम्र थे, इसलिए उनकी इनसे खूब पटती थी। कुछ और परिचित भी आ जाते थे और महफिल जम जाती थी। मकान के उत्तरी हिस्से में बना एक कमरा तो तब भी उसी रूप में था। वहां अटल जी बैठते थे। कभी-कभार जब ठंडाई पीनी होती तो ये लोग आंगन होकर ऊपर वाले कमरे में निकल जाते थे।
जब अटलजी आते तब उनके एक कांग्रेसी दोस्त रमेशचंद्र दीक्षित का भी खूब आना होता था। दोनों में खूब बहस होती थी। यहां दीक्षित बंधुओं की मां फूलमती उनका खासा ख्याल रखती थी। वे उनसे ही कुछ अधिक अटैच हो गये। उनके आने-जाने और कुछ उनकी भाभी रामेश्वरी के बताने से दीक्षित परिवार अटलजी के शौक से वाकिफ हो चुका था। खाने में उन्हें बेसन की दो चीजें पनौछा, रसाद बेहद पसंद थीं। इसके अलावा खीर भी पसंद थी।
हाजिर जवाबी अटल जी की खूबी थी। अप्रैल 1994 में वह पंडित मथुरा प्रसाद दीक्षित के भाई के ब्रह्मभोज पर अलीनगर आये थे। आदतन बिना किसी तामझाम के आना हुआ था। रात में जब जाना हुआ तो स्वर्गीय कैलाश जी के पुत्र संजीव दीक्षित ने कहा कि चलिए आपको पहुंचा देते हैं । छूटते ही अटल जी ने अपनी खास स्टाइल में कहा, “हम पहुंचे हुए हैं पहुंच जाएंगे।”
एक पड़ोसी ने बताया कि जब भी वह यहां आते थे तो हम मिलने जाते थे। एक बार नहीं पहुंचे, तो पूछने लगे। कुछ देर बाद जब देखा तो बोले, “का हाल बा। सब ठीक है ना।”
ऐसा ही एक वाकया दिल्ली का भी है। अटलजी को शाम को दूध पीने की आदत थी। न मिलने पर नाराज हो सकते थे। कम मिलने पर परिहास भी कर सकते थे। वाकया उन दिनों का है जब वह दिल्ली में वीर अर्जुन से जुड़े थे। सूर्य नारायण दीक्षित वहीं पी. एच. डी. करने गये थे। 5-6 महीने वह अटलजी के साथ ही रहे। उनके मुताबिक एक बार वह लोग कहीं किसी के यहां गये थे। शाम को जिस गिलास में दूध मिला वह कुछ छोटा था। सबेरे नाश्ते के समय पानी का जो गिलास आया, उसका आकार बड़ा था। अटलजी ने गिलास को घुमा फिरा कर गौर से देखा, फिर अपने ही अंदाज में कहा, “रात कहां थी महारानी।” वहां मौजूद सारे लोग आशय समझ हंस पड़े।
अटलजी राजनीति में भाई-भतीजावाद के कड़े विरोधी थे। बडे भाई को मिल रहा टिकट कटवा दिया। एक बार अलीनगर स्थित मथुरा सदन आये थे। बातचीत के क्रम में संजीव ने पार्टी से अपने जुड़ाव के बारे में बताया तो उन्होंने संजीव की ओर मुखातिब होकर कहा, “भाजपा की अप्रेंटिस तो बहुत कठिन है।”
रिश्तों का भरपूर ख्याल रखने के साथ उनका ध्यान इस बात पर रहता था कि कोई इसका लाभ लेकर उनकी छवि पर आंच न आने दे। इसलिए पार्टी के कार्यक्रमों में वे रिश्तेदारों को कोई तवज्जो नहीं देते थे। पर पारिवारिक समारोहों में वे बिल्कुल बेतकल्लुफ रहते हैं। कोशिश यह रहती थी कि ऐसे मौकों पर पूरी तरह संजीदा रहने के लिए वे अकेले ही जाएं और मौके का पूरा आनंद लें। वह संबंधों का कितना ख्याल रखते थे, इसके एक-दो वाकये ही काफी हैं।
अटलजी को गोरखपुर में एक चुनावी सभा संबोधित करनी थी। उनसे मिलने के लिए दीक्षित बंधु सर्किट हाउस गए। आने में देरी की वजह से दोनों लौटने लगे। अभी वे सर्किट हाउस से कुछ दूर पहुंचे थे कि गाड़ियों का काफिला आता हुआ दिखा। दोनों चुपचाप काफिले के गुजरने तक के लिए सड़क के किनारे खड़े हो गए। दो गाड़ियां गुजर गई। तीसरी गाड़ी थोड़ी रुकी। एक व्यक्ति उसमें से उचका और हाथ हिलाया और गाड़ी चल दी। बूढ़ी आंखें इसे समझ नहीं पाईं। बाद में पार्टी के नेताओं ने बताया कि हाथ हिलाने वाले अटलजी ही थे। बाद में भाजपा के तबके प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सूर्य नारायण से भेंट के दौरान इसकी तस्दीक करते हुए कहा, “उस गाड़ी में मैं भी था।”
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