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झारखंड डीजीपी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली बाबूलाल मरांडी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज

Babulal Marandi's petition challenging the appointment of Jharkhand DGP rejected in Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद पर अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली दायर अवमानना याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दी। ये याचिकाएं झारखंड के नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी एवं अन्य की ओर से दायर की गई थीं।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा, ”अवमानना की कार्यवाही का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता साधने या निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता। राजनीतिक हिसाब-किताब जनता के बीच जाकर बराबर कीजिए।”

पीठ ने कहा कि मामला मूल रूप से दो अधिकारियों के बीच विवाद का है, जिसे अवमानना का रूप देने की कोशिश की जा रही है। अदालत ने माना कि राज्य सरकार के नियम मौजूदा डीजीपी अनुराग गुप्ता के पक्ष में हैं।

पीठ ने यह भी कहा कि यदि कोई अधिकारी अपने पद या सेवा लाभ के नुकसान से असंतुष्ट है, तो उसके पास कानूनी विकल्प मौजूद हैं। जनहित याचिकाएं केवल समाज के वंचित और असमर्थ वर्ग के हित में दायर की जाती हैं और इसका इस्तेमाल दो प्रतिस्पर्धी अधिकारियों के बीच व्यक्तिगत झगड़ा सुलझाने के लिए नहीं किया जा सकता।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने दलील दी कि झारखंड में भी उत्तर प्रदेश की तरह ‘कार्यवाहक डीजीपी’ नियुक्त किया गया है और इस तरह राज्य सरकारें प्रक्रिया से बचने की कोशिश कर रही हैं।

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ”हमारे असाधारण अधिकार तब तक चलते हैं, जब तक कोई कानून न बना हो। लेकिन, जब विधानमंडल कानून बना देता है, तब अदालत के निर्देशों के बजाय वही कानून लागू होगा।”

सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं।

झारखंड के नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी एवं अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में कहा गया था कि डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ’ मामले में दिए गए 2006 के फैसले और बाद के निर्देशों का उल्लंघन किया गया है।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि डीजीपी अजय कुमार सिंह को उनका दो साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया था और अनुराग गुप्ता को ‘कार्यवाहक’ डीजीपी के रूप में अवैध रूप से नियुक्त किया गया था।

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