N1Live National बैटिंग और गैंबलिंग समाज के लिए गलत, नहीं किया जा सकता स्वीकार: अधिवक्ता विराग गुप्ता
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बैटिंग और गैंबलिंग समाज के लिए गलत, नहीं किया जा सकता स्वीकार: अधिवक्ता विराग गुप्ता

Betting and gambling are wrong for society, cannot be accepted: Advocate Virag Gupta

अधिवक्ता विराग गुप्ता ने मंगलवार को देशभर में बढ़ रहे गेमिंग और गैंबलिंग के चलन पर चिंता जाहिर की और कहा कि इसे एक स्वस्थ समाज में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि सरकार ने खुद इन सभी मामलों को लेकर चिंता जाहिर की। करीब 63 से 65 लाख लोग इन मामलों में लिप्त हैं। गेमिंग में संलिप्त लोगों की संख्या में भी तेजी से इजाफा दर्ज किया जा रहा है। निश्चित तौर पर यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर इन सभी के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तो आगे चलकर स्थिति अप्रिय हो सकती है।

अधिवक्ता ने आगे कहा कि इन्हीं सब स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कई गेमिंग कंपनी सामने आई और उन्होंने कहा कि गेमिंग कंपनी पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि भारत में गेमिंग का प्रचार करना हमारा अधिकार है। इस पर किसी भी प्रकार का अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। कई गेमिंग कंपनियों ने तो यहां तक दावा किया कि उन्हें गेमिंग ऑफ स्किल से भी इस संबंध में मान्यता प्राप्त हुई है। ऐसी स्थिति में इस पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगाने की बात करना पूरी तरह से निरर्थक है, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अब इस मामले में कई तरह के पहलू उभरकर सामने आ रहे हैं। इस संबंध में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने अंडरटेकिंग दी थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को संसद में भी उठाया था। लॉ कमीशन और संविधान में भी इसका जिक्र किया गया है। बेटिंग और गैंबलिंग राज्य सरकारों के अधीन आते हैं। कई राज्यों में इसके खिलाफ कानून भी बनाए जा चुके हैं, तो इस तरह से बेटिंग और गैंबलिंग के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सिर्फ राज्य सरकार ही अधिकृत है।

उन्होंने कहा कि लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जुआ या सट्टा खेलना संवैधानिक अधिकार नहीं हो सकता है। इस देश में सोशल स्पोर्ट्स के नाम पर गैंबलिंग और बेटिंग को किसी भी प्रकार से बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है। यह समाज के लिए बिल्कुल भी हितकारी नहीं है। इस तरह की स्थिति को समाज में स्वीकार किए जाने से स्थिति विषम हो सकती है।

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