हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू ने गुरुवार को कहा कि भागवत पुराण हमें धार्मिकता, भक्ति और सेवा के शाश्वत मूल्यों की शिक्षा देता है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख ईश्वर के प्रति समर्पण और सदाचारी जीवन जीने से मिलता है।
वह केरल के अलाप्पुझा में श्री भगवती मंदिर में 42वें अखिल भारत श्रीमद्भागवत महा सत्रम में भाग ले रहे थे।
मुख्यमंत्री ने महा सत्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत की एक सशक्त याद दिलाता है। उन्होंने गोपिका संगम की सराहना की, जिसमें 16,008 गोपिकाएँ और बच्चे शामिल होते हैं, और इसे एक उल्लेखनीय पहल बताया, जो ‘भक्ति’ के सार को दर्शाता है, जो ईश्वर के प्रति शुद्ध और बिना शर्त वाला प्रेम है।
सुक्खू ने इन पवित्र परंपराओं को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए आयोजकों को बधाई दी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भावी पीढ़ियां अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ी रहें।
उन्होंने कहा, “केरल आध्यात्मिकता का केंद्र है, जहां भक्ति और संस्कृति आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। इस तरह के समागम का विभिन्न राज्यों और समुदायों के लोगों को आस्था के माध्यम से एकजुट करने में बहुत महत्व है।”
सुखू ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत बहुत समृद्ध है और इसे देवभूमि कहा जाता है। उन्होंने कहा, “हिमाचल पवित्र शक्ति पीठों, प्राचीन मंदिरों और शांत आध्यात्मिक स्थलों का घर है जो लाखों भक्तों को शांति और तृप्ति प्रदान करते हैं।”
सुक्खू ने कहा कि छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश प्रतिवर्ष चार अंतरराष्ट्रीय, पांच राष्ट्रीय, 23 राज्य स्तरीय और अनेक स्थानीय मेले मनाता है, जो इसकी जीवंत संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं तथा धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को आकर्षित करते हैं।
उन्होंने कहा, “तीर्थयात्रा के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए, राज्य सरकार पहाड़ी मंदिरों को रोपवे से जोड़ने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है, ताकि भक्तों की पहुँच सुनिश्चित हो सके। सरकार ने प्रमुख मंदिरों को जोड़ने वाली एक ई-कनेक्टिविटी परियोजना भी शुरू की है, जिससे भक्त ‘यज्ञ’, ‘भंडारा’ और ‘जागरण’ जैसे धार्मिक समारोहों की ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं।”
Leave feedback about this