सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार को ‘उंगलुदन स्टालिन योजना’ को लेकर बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के विज्ञापनों में मुख्यमंत्री और राजनेताओं की तस्वीरें लगाने पर रोक लगाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने एआईएडीएमके सांसद सी.वी.षणमुगम पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने राजनीतिक लड़ाई के लिए अदालत का दुरुपयोग किया। अगर याचिकाकर्ता को फंड के दुरुपयोग की चिंता थी, तो उसे सभी ऐसी योजनाओं को चुनौती देनी चाहिए थी, न कि केवल एक पार्टी के खिलाफ।
एआईएडीएमके सांसद सी.वी.षणमुगम ने ‘उंगलुदन स्टालिन योजना’ को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कल्याणकारी योजनाओं में वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम व तस्वीरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट ने नाराजगी जताई कि याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करने के तीन दिन बाद ही आयोग के फैसले का इंतजार किए बिना, अदालत में याचिका दायर कर दी। इससे चुनाव आयोग की प्रक्रिया को नजरअंदाज किया गया। तमिलनाडु सरकार के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि कई सरकारी योजनाओं में पहले भी राजनेताओं के नाम और तस्वीरें इस्तेमाल होती रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘कॉमन कॉज’ मामले में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सीजेआई, और मुख्यमंत्री की तस्वीरों को विज्ञापनों में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी।
वकील पी. विल्सन ने मीडिया से बातचीत में बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की विशेष याचिका पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह याचिका मद्रास हाई कोर्ट के उस अंतरिम आदेश के खिलाफ थी, जिसमें सरकार की योजनाओं में मुख्यमंत्री का नाम इस्तेमाल करने से रोका गया था। सरकार का नेक इरादा था कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ तमिलनाडु के हर घर तक पहुंचे और यही वजह थी कि स्टालिन सरकार की योजनाओं के विरोध में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को ‘राजनीति से प्रेरित’ माना और हाईकोर्ट की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने बार-बार कहा है कि राजनीतिक लड़ाइयों के निपटारे में अदालतों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, हाईकोर्ट में याचिका दायर करना गलत था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इतनी जल्दबाजी में अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद याचिकाकर्ता ने लगातार उल्लंघन करने का दुस्साहस किया है। चुनाव आयोग को सुनवाई का मौका न देना और चुनाव आयोग पर कार्रवाई करने में विफलता का आरोप लगाकर याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग की आलोचना करने की भी कोशिश की है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और जुर्माने को एक हफ्ते में जमा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं करने पर इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा।
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