बिहार के शेखपुरा स्थित जीविका दीदी सिलाई घर उन महिलाओं के लिए रोजगार का नया जरिया बनकर सामने आया है जो पारिवारिक जिम्मेदारियों में बंधकर रह जाती हैं। यहां महिलाओं को रोजगार मिल रहा है और हर माह वह सात-आठ हजार रुपये कमा रही हैं, इससे उनके परिवार का पालन-पोषण अच्छे से हो रहा है। यहां पर जीविका दीदियों द्वारा निर्मित वस्त्र बिहार के विभिन्न जिलों में बिक्री के लिए भेजे जा रहे हैं।
जीविका के जिला परियोजना प्रबंधक संतोष कुमार सोनू ने बताया कि शेखपुरा में जीविका दीदियों के द्वारा प्रोडक्शन यूनिट की स्थापना की गई है। यहां पर छह अस्पतालों के ऑर्डर भी मिले हैं। जीविका दीदियों के द्वारा मरीजों के कपड़े तैयार किए जाएंगे। हम लोगों की योजना है कि यहां पर निजी अस्पताल और स्कूलों के साथ तालमेल बिठाया जाए। जिससे यहां पर स्कूल-अस्पताल के लिए कपड़े तैयार किए जाएं जिससे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिल सके। उन्होंने कहा कि यहां 105 दीदियों को सिलाई का प्रशिक्षण दिया गया था जिसमें 35 से 40 दीदियां काम कर रही हैं।
जीविका दीदी सिलाई घर में काम कर रही बबीता ने बताया कि पहले घर पर खाली बैठे थे। यहां पर काम करके रोजगार मिला है। पहले घर की स्थिति खराब थी। मेरे पति घर में कमाने वाले एकमात्र शख्स हैं। उनकी कमाई से घर का खर्च चलाना मुश्किल था। यहां काम करने के बाद महीने में सात-आठ हजार रुपये कमा लेते हैं जिससे परिवार को काफी राहत मिली है।
सोनी देवी ने कहा कि पति ऑटो चलाते हैं और मैं यहां काम करके अपना रोजगार चला रही हूं। पहले कुछ काम नहीं करते थे। यहां काम करने से परिवार अच्छा चल रहा है। सात लोगों का परिवार चल रहा है। जीविका से जुड़े थे, इसलिए यहां आए। बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर रहे हैं।
एक युवती ने बताया कि यहां जैसे भी वस्त्र सिलने के लिए दिया जाता है हम करते हैं। परिवार में पिता बीमार हैं और मां काम नहीं कर सकती है। मैं पढ़ाई करना चाहती हूं, इसलिए यहां काम कर रही हूं। यहां जो पैसे मिलते हैं उनके घर का खर्च भी चलता है और मेरी पढ़ाई का खर्च भी निकल जाता है। यहां से काम करने के बाद रात के वक्त ऑनलाइन माध्यम से हम पढ़ाई भी जारी रखते हैं।
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