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बिहार : पति की मृत्यु के बाद आत्मनिर्भर बनीं तारा देवी, जीविका से संवारा भविष्य

Bihar: Tara Devi became self-reliant after her husband's death, secured her future through livelihood

बिहार के जमुई शहर के भजोर गांव की रहने वाली तारा देवी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। साल 2022 में एक सड़क हादसे में अपने पति मुकेश सिंह को खोने के बाद, जहां कई महिलाएं टूट जाती हैं, वहीं तारा देवी ने हालात से लड़ने का साहस दिखाया और अपने परिवार को आत्मनिर्भरता की राह पर ले गईं।

पति की मौत के बाद तारा देवी पर तीन बेटियों की जिम्मेदारी आ गई। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने जीविका समूह से 30 हजार रुपए का लोन लिया और उसी पूंजी से पोषण वाटिका (किचन गार्डन) और एनपीएम (नॉन पेस्टीसाइड मैनेजमेंट) शॉप की शुरुआत की। आज वह हर दिन लगभग तीन से चार हजार रुपए तक का सामान बेचती हैं, जिससे प्रतिदिन 500 रुपए तक की कमाई हो जाती है। इस आमदनी से न केवल वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं, बल्कि तीनों बेटियों की पढ़ाई भी जारी रखी हुई है।

तारा देवी कहती हैं कि जीविका योजना ने मुझे सहारा दिया और आज मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हूं। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद दिया।

समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए तारा देवी ने कहा कि मुझे जीविका के माध्यम से सहायता मिली। मैं जीविका से जुड़ी हुई थी। तीन बच्चों के कारण हमने पशु सखी का काम शुरू किया। पति के दुर्घटना में निधन के बाद मैं 2-4 महीने घर पर रही। फिर मैंने दुकान चलानी शुरू की, जिससे मैं अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हूं।

उन्होंने बताया कि 2022 में पति के निधन के बाद मैंने 30,000 रुपए का ऋण लिया और उसे दुकान में लगाया। अब मैं सुबह सात बजे दुकान आती हूं और शाम सात बजे जाती हूं। मेरी बड़ी बेटी 17 साल की, दूसरी 13 साल की, और छोटी 11 साल की है। तीनों बच्चे इस दुकान की आय से पढ़ रहे हैं और उनका पालन-पोषण हो रहा है। प्रतिदिन मुझे 500 रुपए की बचत होती है।

तारा देवी ने कहा कि मैं चाहती हूं कि मेरी बड़ी बेटी जीएनएम (जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी) करे, क्योंकि उसके पिता भी चिकित्सा क्षेत्र में थे। दूसरी बेटी को शिक्षिका बनाना चाहती हूं। तीनों बच्चे अभी पढ़ रहे हैं। मैं सरकार को बहुत-बहुत धन्यवाद देती हूं, क्योंकि मेरे पास दुकान शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे। उस समय कोई मदद के लिए तैयार नहीं था, लेकिन जीविका ने 30 हजार रुपए की सहायता दी। उसी पूंजी से आज मैं अपना घर चला रही हूं और बच्चों को पढ़ा रही हूं। इसके लिए मैं नरेंद्र मोदी जी और नीतीश कुमार जी को धन्यवाद देती हूं।

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