बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने एक बार फिर इसी बात को दोहराया है कि बिहार वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का कार्य छह माह पहले किया जाना चाहिए था। चुनाव में अब कम वक्त है, ऐसे में वोटर वेरिफिकेशन कराने से चुनाव आयोग क्या साबित करना चाहता है।
वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन मामले में इंडी अलायंस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट में इंडी अलायंस की याचिका पर 10 जुलाई को सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इसे चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व माना है।
कोर्ट के इस रुख पर राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने शनिवार को समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि संविधान स्पष्ट रूप से भारतीय नागरिकों को मतदान का अधिकार देता है। उन्होंने प्रक्रिया के समय पर सवाल उठाया, खासकर इसलिए कि यह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई, जिससे गरीब और प्रवासी मजदूरों को दस्तावेज जमा करने में कठिनाई हो सकती है।
सिद्दीकी ने सुझाव दिया कि ऐसी प्रक्रिया कम से कम छह महीने पहले शुरू होनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी कहा कि घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई सरकार का काम है, न कि चुनाव आयोग का, जिसका मुख्य दायित्व निष्पक्ष चुनाव कराना और योग्य मतदाताओं को उनके अधिकार सुनिश्चित करना है। विपक्षी दलों, जैसे आरजेडी और कांग्रेस, ने इस प्रक्रिया को “वोटबंदी” करार देते हुए इसे अल्पसंख्यक और कमजोर वर्गों के मतदाताओं को सूची से हटाने की साजिश बताया।
सीट बंटवारे पर उन्होंने कहा कि बैठक चल रही है और सीट बंटवारे को लेकर किसी भी तरह से कोई दिक्कत नहीं है।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के मंच पर पप्पू यादव और कन्हैया कुमार की एंट्री नहीं होने पर उन्होंने कहा कि भाजपा को इससे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। कार्यक्रम पूर्व निर्धारित होता है कि कौन मंच पर जाएगा और कौन नहीं जाएगा। इसमें हमारे नेता तो वहां नहीं गए। भाजपा को अपने घर की चिंता करने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर 10 जुलाई को हुई सुनवाई के बाद बिहार में वोटर लिस्ट में वेरिफिकेशन का कार्य जारी रहेगा। हालांकि, कोर्ट ने दस्तावेज मामले में कुछ बिंदुओं पर आयोग को सलाह भी दी है।
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