N1Live National जयंती विशेष: आजादी के लिए नौकरी छोड़ी, जेल गए मगर हिम्मत न हारी, खूबचंद बघेल की प्रेरणादायक कहानी
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जयंती विशेष: आजादी के लिए नौकरी छोड़ी, जेल गए मगर हिम्मत न हारी, खूबचंद बघेल की प्रेरणादायक कहानी

Birth Anniversary Special: Left job for freedom, went to jail but did not lose courage, inspirational story of Khubchand Baghel

छत्तीसगढ़ की धरती ने कई महान सपूतों को जन्म दिया है, जिनमें खूबचंद बघेल का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वे छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने न केवल राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि क्षेत्रीय अस्मिता, कृषक कल्याण और सांस्कृतिक जागरूकता को भी एक नई दिशा दी। हर वर्ष 19 जुलाई को महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और कृषक नेता खूबचंद बघेल की जयंती मनाई जाती है।

उनका जन्म 19 जुलाई 1900 को रायपुर जिले के ग्राम पथरी में हुआ था। पिता का नाम जुड़ावन प्रसाद और माता का नाम केकती बाई था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राप्त करने के बाद उन्होंने रायपुर से हाईस्कूल की पढ़ाई की और 1925 में नागपुर से चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण कर असिस्टेंट मेडिकल ऑफिसर के रूप में कार्यभार संभाला।

हालांकि, वे पेशे से एक डॉक्टर थे, लेकिन देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना के प्रभाव में आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने गांव-गांव घूमकर असहयोग आंदोलन का प्रचार किया। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी त्याग दी और जेल भी गए।

1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए उन्हें कुल तीन बार जेल जाना पड़ा, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें ढाई साल की कठोर कैद भी हुई।

स्वतंत्रता के बाद भी उनका संघर्ष जारी रहा। 1951 में कांग्रेस से मतभेद के कारण वे आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर पार्टी में शामिल हुए और उसी साल विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। वे 1962 तक विधायक और बाद में 1967 में राज्यसभा सदस्य बने।

उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कृषि, ग्रामीण विकास और आदिवासी कल्याण को समर्पित कर दिया। छत्तीसगढ़ के अनेक आदिवासी और कृषक आंदोलनों में वे नेतृत्वकर्ता और प्रेरणा स्रोत रहे। वे मानते थे कि कृषि को भी उद्योग के समान महत्व मिलना चाहिए और उन्होंने इसी सोच को आधार बनाकर अनेक पहल कीं।

डॉक्टर बघेल केवल राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहे, वे छत्तीसगढ़ी भाषा, लोक साहित्य और सांस्कृतिक चेतना के भी सजग संरक्षक थे। उन्होंने 1967 में रायपुर में ‘छत्तीसगढ़ भ्रातृसंघ’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ी भाषा और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करना था। उनका साहित्यिक और लोकभाषाई योगदान भी अद्वितीय रहा।

उनका देहावसान 22 फरवरी 1969 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी छत्तीसगढ़ की आत्मा में जीवित हैं। उनकी स्मृति में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जैसे डॉ. खूबचंद बघेल कृषक रत्न पुरस्कार (राज्य स्तरीय सम्मान), खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना, और खूबचंद बघेल शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दुर्ग।

डॉक्टर खूबचंद बघेल की जयंती पर उन्हें स्मरण करना, उनके आदर्शों और संघर्षों को नमन करना है।

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