July 4, 2025
Entertainment

बर्थडे स्पेशल : डांट में था प्यार, इनाम में था आशीर्वाद, सख्ती और ममता का रूप थीं सरोज खान

Birthday Special: There was love in scolding, there was blessing in reward, Saroj Khan was the embodiment of strictness and affection

बॉलीवुड में जब भी कोरियोग्राफर की बात होती है, तो दिमाग में सरोज खान का नाम सबसे पहले आता है। बेशक आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनका जज्बा और उनके शानदार डांस मूव्स आज भी हमारे दिलों में बसे हुए हैं। 3 जुलाई 2020 को कार्डियक अरेस्ट के चलते उनका निधन हो गया था। 71 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली और पीछे छोड़ गईं अपना जोश और कभी हार न मानने की ताकत। वह अपनी पूरी जिंदगी नाचती रहीं, झूमती रहीं।

सरोज खान का असली नाम निर्मला नागपाल था। उनकी अदाओं में वो खास बात थी जो हर गाने को और भी खास बना देती थी। उन्होंने माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी, ऐश्वर्या राय जैसी बड़ी अभिनेत्रियों को डांस सिखाया। उनके अंदर गुरु की गंभीरता और मां की ममता एक साथ बसी थी। वह जितनी सख्त नजर आती थीं, उतनी ही कोमल दिल की भी थीं। बॉलीवुड के मशहूर कोरियोग्राफर बॉस्को मार्टिस ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे उन्होंने और उनके पार्टनर सीजर ने पश्चिमी डांस स्टाइल्स को बॉलीवुड में लाने की कोशिश की, लेकिन सबसे ज्यादा डर उन्हें सरोज खान जी के गुस्से का था।

बॉस्को मार्टिस ने कहा, ”मैं और मेरा साथी सीजर, जब हम अपने डांस स्टाइल को बॉलीवुड में लाने की कोशिश कर रहे थे, तो हमें सिर्फ सरोज खान का डर था, क्योंकि वह पारंपरिक और भारतीय स्टाइल की मल्लिका थीं। लेकिन, जब उनसे करीब से मुलाकात हुई, तो पता चला कि वह असल में भारतीयता की शुद्धता को बचाए रखना चाहती थीं। उन्होंने हमें अपने साथ काम करने का मौका दिया, आशीर्वाद दिया और हमें हमेशा प्रोत्साहित किया।”

उन्होंने आगे कहा, ”मैं अपने आप को खुशनसीब मानता हूं कि मैंने उनकी छांव में डांस को बेहतर तरीके से जाना। मुझे याद है, ‘डांस इंडिया डांस’ के सेट पर उन्होंने मेरी तारीफ में 100 रुपये का इनाम दिया था। उस पल की खुशी बयान करना नामुमकिन है। उनकी मां जैसी ममता और सख्त अंदाज दोनों एक साथ देखने को मिलते थे।”

सरोज ने अपने करियर की शुरुआत महज 3 साल की उम्र में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्म ‘नजराना’ से की थी, लेकिन उनका झुकाव धीरे-धीरे डांस की तरफ होता गया। शुरुआती दिनों में वह बैकग्राउंड डांसर के तौर पर काम करती थीं और 13 साल की उम्र में ही उन्होंने कोरियोग्राफी सीखनी शुरू कर दी। उन्होंने मशहूर डांस डायरेक्टर बी. सोहनलाल के असिस्टेंट के तौर पर काम किया और डांस की बारीकियों को गहराई से जाना।

उनके करियर का असली मोड़ तब आया जब उन्हें स्वतंत्र रूप से कोरियोग्राफर बनने का मौका मिला। फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ से उन्होंने बतौर स्वतंत्र कोरियोग्राफर शुरुआत की, लेकिन पहचान 1986 में आई फिल्म ‘नगीना’ के सुपरहिट गाने ‘मैं तेरी दुश्मन’ से मिली। इस गाने में श्रीदेवी के जबरदस्त डांस ने दर्शकों का दिल जीत लिया और सरोज खान की भी लोकप्रियता बढ़ी। इसके बाद 1987 में ‘मिस्टर इंडिया’ का गाना ‘हवा हवाई’ जिसने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया।

सरोज खान का करियर उस वक्त सातवें आसमान पर पहुंच गया, जब 1988 की फिल्म ‘तेजाब’ का ‘एक दो तीन’ गाना कोरियोग्राफ किया। इस गाने ने न सिर्फ माधुरी को रातोंरात स्टार बना दिया, बल्कि सरोज खान को भी ‘हिट मशीन’ का दर्जा दिला दिया। इस गाने की सफलता इतनी बड़ी थी कि फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में पहली बार ‘बेस्ट कोरियोग्राफी’ की कैटेगरी शुरू की गई और पहला अवॉर्ड सरोज खान को दिया गया। ‘ढोली तारो’, ‘हमको आजकल है इंतजार’, ‘चोली के पीछे’, ‘धक-धक करने लगा’, ‘डोला रे डोला’, और ‘निंबूड़ा’ जैसे गानों ने उन्हें कोरियोग्राफी की दुनिया की महारानी बना दिया।

सरोज खान ने लगभग 2,000 से ज्यादा गानों को कोरियोग्राफ किया। बॉलीवुड की तमाम बड़ी एक्ट्रेस उनकी कोरियोग्राफी में थिरकती नजर आईं। उन्होंने साधना, वैजयंतीमाला, हेलन, शर्मिला टैगोर, वहीदा रहमान, जीनत अमन, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, करिश्मा, उर्मिला, रवीना टंडन, ऐश्वर्या राय और करीना कपूर जैसी एक्ट्रेस को डांस सिखाया।

सरोज खान की खासियत यह थी कि वह डांस को सिर्फ स्टेप्स तक सीमित नहीं रखती थीं। उनका मानना था कि डांस में भाव होना चाहिए, चेहरे से कहानी दिखनी चाहिए। वह हर गाने की एक-एक लाइन को तोड़ती थीं और उसके हिसाब से एक्सप्रेशन और मूवमेंट बनाती थीं। उन्होंने इंडियन फोक डांस और क्लासिकल डांस को मुख्यधारा की फिल्मों में लोकप्रिय बना दिया। वह अपनी अलग स्टाइल, सादगी और अनुशासन के लिए जानी जाती थीं।

सरोज खान को तीन बार नेशनल अवॉर्ड और आठ बार फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुके हैं। उन्होंने टीवी रियलिटी शोज़ में भी बतौर जज हिस्सा लिया और नए कलाकारों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कोरियोग्राफी को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक कला का दर्जा दिलाया।

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