मुंबई, 14 मार्च । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का राज्य के पूर्व मंत्री और पार्टी के दिवंगत वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे को महाराष्ट्र के बीड से मैदान में उतारने का फैसला अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मतदाताओं को लुभाने के लिए एक सोचा-समझा कदम है।
राज्य की जनसंख्या में 52 प्रतिशत ओबीसी हैं। वंजारी समुदाय में पकड़ रखने वाली पंकजा को एक उभरते ओबीसी नेता के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा स्पष्ट रूप से पंकजा में ओबीसी समुदाय से समर्थन जुटाने की क्षमता देखती है, जो न केवल बीड में, बल्कि मराठवाड़ा क्षेत्र की सात अन्य लोकसभा सीटों पर भी महत्वपूर्ण होगा, जहां मराठा समर्थक कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल ने मराठा आरक्षण की माँग को लेकर अपना विरोध-प्रदर्शन किया था, विशेषकर ओबीसी कोटे से।
पंकजा 2019 का विधानसभा चुनाव अपने गृह जिले बीड के परली से चचेरे भाई और तत्कालीन अविभाजित राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी सदस्य धनंजय मुंडे के खिलाफ हार गई थीं।
हालाँकि, अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली मौजूदा शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल होने के बाद राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अब सौहार्दपूर्ण रिश्ते में बदल गई है। धनंजय मुंडे अब महायुति सरकार में कृषि मंत्री हैं।
मराठा और ओबीसी कोटा विवाद पर, पंकजा अपने रुख पर कायम थीं कि सरकार को मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करना चाहिए, जो कानून की कसौटी पर भी खरा उतरेगा। उन्होंने दृढ़ता से कहा था कि मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच कड़वाहट खत्म होनी चाहिए।
महाराष्ट्र से राज्यसभा उम्मीदवारों की पार्टी की सूची से उनका नाम गायब होने के बाद, पंकजा ने कहा था कि वह एक पद की उम्मीद कर रही थीं, लेकिन महाराष्ट्र में ‘ट्रिपल-इंजन’ सरकार के गठन के बाद उनके लिए कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं छोड़ा गया था।
इस सवाल पर कि क्या वह लोकसभा या राज्यसभा जाना चाहेंगी, उन्होंने जवाब दिया था कि अभी चयन करने में बहुत देर हो चुकी है।
उन्होंने कहा था, ”अगर बीड और महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों में मेरे समर्थक मुझे उस पद पर देखेंगे तो यह बड़ी बात होगी।”