पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों में 32,000 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती में अनियमितताओं से जुड़े मामले पर बुधवार को कलकत्ता हाईकोर्ट की डिविजन बेंच अपना फैसला सुनाएगी। इस फैसले का इंतजार न सिर्फ याचिकाकर्ताओं को है, बल्कि राज्य सरकार और हजारों नियुक्त शिक्षकों की नजर भी इसी पर टिकी है।
इस मामले की सुनवाई 28 अप्रैल को शुरू हुई थी। जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस रितब्रत कुमार मित्रा की बेंच ने लगभग छह महीने तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। 12 नवंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले की शुरुआत तब हुई, जब 12 मई 2023 को कलकत्ता हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने 32,000 प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्तियां रद्द कर दी थीं।
कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया था कि कई उम्मीदवारों को कम रैंक होने के बावजूद पैसे देकर नौकरी दिलाई गई थी।
राज्य सरकार ने इस फैसले को डिविजन बेंच में चुनौती दी। मामला पहले जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस स्मिता दास डे की बेंच को भेजा गया था, लेकिन बाद में जस्टिस सेन ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। इसके बाद यह मामला मौजूदा डिविजन बेंच को सौंपा गया।
2014 में पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ प्राइमरी एजुकेशन ने टीईटी के आधार पर 42,500 प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति की थी। इसी भर्ती प्रक्रिया पर कई उम्मीदवारों ने बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायत कोर्ट में की थी। इन आरोपों की लंबी सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने 32,000 नियुक्तियां रद्द कर दी थीं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या डिविजन बेंच सिंगल बेंच के फैसले को बरकरार रखती है या कोई अलग फैसला सुनाती है। अगर यह नियुक्तियां रद्द होती हैं, तो यह साल में दूसरी बार होगा जब शिक्षक भर्ती मामले में राज्य सरकार को बड़ा झटका लगेगा।
इससे पहले अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बेंच ने उस आदेश को सही ठहराया था जिसमें डब्ल्यूबीएसएससी की 2016 की पूरी पैनल रद्द कर दी गई थी। इससे लगभग 26,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नौकरी प्रभावित हुई थी।

