N1Live National ‘इतने लंबे समय तक लोगों को हिरासत में नहीं रख सकते’, सुप्रीम कोर्ट ने आबकारी नीति मामले के आरोपी बेनॉय बाबू को दी जमानत
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‘इतने लंबे समय तक लोगों को हिरासत में नहीं रख सकते’, सुप्रीम कोर्ट ने आबकारी नीति मामले के आरोपी बेनॉय बाबू को दी जमानत

'Can't keep people in custody for so long', Supreme Court grants bail to Benoy Babu, accused in excise policy case

नई दिल्ली, 8 दिसंबर । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आबकारी नीति मामले के आरोपी बेनॉय बाबू को यह कहते हुए जमानत दे दी कि 13 महीने की प्री-ट्रायल कैद काफी लंबी है।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अब समाप्त हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पिछले साल नवंबर में पेरनोड रिकॉर्ड इंडिया के अधिकारी को गिरफ्तार किया था।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने ईडी की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर एस.वी. राजू से कहा, “यह उचित नहीं है। लोगों को मुकदमे से पहले आप इतने लंबे समय तक हिरासत में नहीं रख सकते…सीबीआई और ईडी जो आरोप लगा रहे हैं, उनमें विरोधाभास प्रतीत होता है।”

पीठ में शामिल एस.वी.एन. भट्टी ने कहा कि बाबू को लगभग 13 महीने तक कारावास का सामना करना पड़ा है और मुकदमा इस अर्थ में शुरू नहीं हुआ है कि अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं।

यह देखते हुए कि शराब कंपनी के महाप्रबंधक आबकारी नीति मामले में सीबीआई द्वारा दायर आरोप पत्र में आरोपी नहीं हैं, अदालत ने कहा, “हम वर्तमान अपील की अनुमति देते हैं और निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता बेनॉय बाबू को जमानत पर रिहा किया जाए।”

इस साल जुलाई में, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और सह-अभियुक्त – हैदराबाद के व्यवसायी अभिषेक बोइनपल्ली, आप के संचार प्रभारी विजय नायर तथा फ्रांसीसी स्पिरिट्स कंपनी के भारत महाप्रबंधक बेनॉय बाबू को जमानत देने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि वे धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जमानत देने की दोहरी शर्तों और जमानत देने के लिए ट्रिपल टेस्ट को पूरा करने में विफल रहे।

ट्रायल कोर्ट ने पहले कहा था कि उपलब्ध सबूतों से पता चलता है कि बाबू ने एचएसबीसी बैंक से कार्टेल के अन्य सदस्यों द्वारा प्राप्त ऋण के लिए 200 करोड़ रुपये की कॉर्पोरेट गारंटी देने के पेरनोड रिकार्ड के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

ईडी का मनी लॉन्ड्रिंग मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी पर आधारित है जो दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद दर्ज की गई थी।

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