N1Live Haryana केंद्र ‘सुनियोजित साजिश’ के तहत एमएसपी खत्म करना चाहता है: सुरजेवाला
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केंद्र ‘सुनियोजित साजिश’ के तहत एमएसपी खत्म करना चाहता है: सुरजेवाला

Center wants to end MSP as part of 'planned conspiracy': Surjewala

कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आज आरोप लगाया कि केंद्र पिछले दरवाजे से एमएसपी को खत्म करना चाहता है और पंजाब और हरियाणा के किसानों को अब निरस्त किए गए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए एक ‘सुनियोजित साजिश’ के तहत दंडित किया जा रहा है।

यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सुरजेवाला ने दावा किया कि पंजाब और हरियाणा के किसानों को तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए एक ‘सुनियोजित साजिश’ और डिजाइन के तहत दंडित किया जा रहा है।

उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार एक सुनियोजित साजिश के तहत पिछले दरवाजे से एमएसपी को खत्म करना चाहती है। सुरजेवाला ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में आज तक कम धान की खरीद हुई है।

उन्होंने आरोप लगाया, “षड्यंत्र के छह हिस्से हैं। षडयंत्र का मुख्य हिस्सा पिछले दरवाजे से एमएसपी को खत्म करना, अंततः एमएसपी को खत्म करना, बिहार की तर्ज पर अनाज मंडियों को खत्म करना, एमएसपी पर फसल खरीद में कटौती करके धीरे-धीरे इसे खत्म करना है। आज उन्होंने खरीद आधी कर दी है, फिर वे और भी कटौती करेंगे। अगले 2-4 वर्षों में वे एमएसपी को बेमानी बना देंगे, किसानों के लिए नामित पोर्टल पर पंजीकरण को बेमानी बना देंगे।”

सुरजेवाला ने आरोप लगाया, ‘‘हरियाणा के कैथल जिले में ढांड या पुंडरी अनाज मंडी में जाइए। वहां साजिश रची गई है, अनाज मंडी बंद कर दी गई है।’’ उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में लगभग 9,000 चावल मिलें हैं, जिनमें से अधिकांश पीडीएस और अन्य योजनाओं के लिए खरीदे गए अनाज की पिसाई करती हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार चावल मिलर्स के कारोबार में बाधा उत्पन्न करती है, ताकि एमएसपी पर खरीदे गए किसानों के धान की खरीद और मिलिंग कम मात्रा में हो।

उन्होंने कहा, “पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार ने सब्सिडी यानी उर्वरक, खाद्य और ईंधन सब्सिडी में 3,30,000 करोड़ रुपये की भारी कटौती की है। वर्ष 2020-21 में यह सब्सिडी जीडीपी का 3.8 प्रतिशत यानी 7,58,165 करोड़ रुपये थी और वर्ष 2024-25 में यह सब्सिडी जीडीपी के 1.3 प्रतिशत यानी 4,28,423 करोड़ रुपये रह गई। स्वाभाविक रूप से इसका खामियाजा कृषि और किसानों को भुगतना पड़ रहा है।”

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