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एक्शन में बदलाव, हवा से मिल रही ड्रिफ़्ट: कुलदीप की धर्मशाला सफलता का राज़

Change in action, drift from wind: The secret of Kuldeep's Dharamshala success

धर्मशाला, कुलदीप यादव के लिए धर्मशाला का मैदान बहुत विशेष रहा है। 2017 में उन्होंने यहां से ही अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी और ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपनी डेब्यू पारी में चार विकेट लिए थे। हालांकि इसके बाद पिछले सात वर्षों में उन्हें सिर्फ़ 10 और टेस्ट मैच खेलने का मौक़ा मिला, जिसमें प्रभावित करने के बावजूद भी आर अश्विन-रवींद्र जडेजा की सफल स्पिन जोड़ी की उपस्थिति के कारण उन्हें लंबे फ़ॉर्मैट में अधिक मौक़े नहीं मिले।

भारत और इंग्लैंड के बीच पांचवें टेस्ट की पूर्व संध्या पर जब पिच और परिस्थितियों को देखते हुए भारतीय कप्तान रोहित शर्मा से अंतिम एकादश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने तीसरे तेज़ गेंदबाज़ को खेलाने की संभावना से इनकार नहीं किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि आर अश्विन और रवींद्र जडेजा किसी भी परिस्थिति में उनके सर्वश्रेष्ठ स्पिनर्स हैं। इसका यह भी अर्थ था कि अगर भारतीय गेंदबाज़ी क्रम में कोई भी बदलाव होता, तो कुलदीप पर तलवार लटकने की संभावना सबसे अधिक थी। हालांकि ऐसा नहीं हुआ और कुलदीप धर्मशाला टेस्ट में भारतीय एकादश का हिस्सा थे।

धर्मशाला टेस्ट में कुलदीप जब गेंदबाज़ी करने आए, तब तक इंग्लैंड के दोनों सलामी बल्लेबाज़ 17 ओवर में 55 रन जोड़ चुके थे। पिच, मौसम और नई गेंद से मिल रही मदद के बीच उन्होंने जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज के घातक स्पैल को बख़ूबी संभाला था। अपना 100वां टेस्ट खेल रहे आर अश्विन भी अपने पहले दो ओवरों में बेन डकेट व ज़ैक क्रॉली को परेशान नहीं कर पाए थे और लग रहा था कि इंग्लैंड यहां से एक बड़ा स्कोर खड़ा कर सकता है। 18वें ओवर में कुलदीप को पहली बार गेंदबाज़ी पर लाया जाता है और वह अपने पहले ही ओवर में गेंद को बाहर निकालकर डकेट को चलता करते हैं।

इसके बाद कुलदीप रूकते ही नहीं हैं और लगातार 15 ओवर गेंदबाज़ी कर आधी इंग्लिश टीम को पवेलियन भेज देते हैं। यह टेस्ट मैचों में कुलदीप का चौथा पंजा (5-विकेट हॉल) था। इस दौरान कुलदीप ने टेस्ट मैचों में अपना 50 टेस्ट विकेट भी पूरे किये, जो कि गेंदों (1871 गेंद) के हिसाब से भारत के लिए सबसे तेज़ 50 विकेट का रिकॉर्ड था। उन्होंने अक्षर पटेल के 2205 गेंदों के रिकॉर्ड को तोड़ा। कुलदीप ने अपने स्पैल में लगातार 15 ओवर गेंदबाज़ी करते हुए 72 रन दिए और पंजा खोला।

उन्होंने गेंद को दोनों तरफ़ घुमाया और कभी अपनी लेग ब्रेक और कभी गुगली गेंदों से इंग्लिश बल्लेबाज़ों को परेशान किए रखा। उनके पांच में से तीन विकेट गुगली और दो विकेट लेग ब्रेक से आए। इसके अलावा कुछ ऐसे मौक़े भी बने जब उनकी गेंद पर कैच छूटे या फिर क़रीबी मामले में संशय होने पर भारत ने रिव्यू नहीं लिया।

दिन के खेल के बाद कुलदीप ने कहा, “पहले घंटे में काफ़ी ठंड थी और लग रहा था कि विकेट अच्छा खेल रहा है और यह जल्दी टूटेगा नहीं। हालांकि ठंडी हवा के कारण गेंद को ड्रिफ़्ट भी मिल रही थी। मैंने दोनों तरफ़ गेंद को ड्रिफ़्ट कराया और मैं ख़ुश हूं कि हम उनको 218 पर ऑलआउट कर सके।”

कुलदीप के लिए धर्मशाला का यह टेस्ट एक जीवन-चक्र पूरा होने के जैसा है। उन्होंने यहां पर टेस्ट डेब्यू किया और एक समय तत्कालीन कोच रवि शास्त्री ने उन्हें लंबे फ़ॉर्मैट का भारत का सर्वश्रेष्ठ ओवरसीज़ गेंदबाज़ भी कहा था। लेकिन उन्हें कभी भी पर्याप्त मौक़े नहीं मिले, जिसका कारण उनके टेस्ट मैचों की संख्या सिर्फ़ 12 है।

अपनी इस यात्रा को याद करते हुए कुलदीप मुस्कुराकर कहते हैं, “मेरी यह यात्रा काफी दिलचस्प रही है। अगर ईमानदारी से कहूं तो मैं पहले से काफ़ी परिपक्व हो गया हूं और अपनी गेंदबाज़ी को बहुत ही बेहतर ढंग से समझता हूं। अभी मुझमें इतनी समझ आ गई है कि विकेट को कैसे पढ़ना है, बल्लेबाज़ को कैसे पढ़ना है।”

कुलदीप का टेस्ट करियर भले ही सात साल लंबा हो, लेकिन उन्हें कभी भी लगातार मौक़े नहीं मिले। यह पहली सीरीज़ है, जब उन्होंने लगातार चार टेस्ट खेले हैं और लगभग हर टेस्ट में लंबा स्पैल किया। रांची के पिछले टेस्ट की दूसरी पारी में उन्होंने लगातार 14 ओवर का स्पैल डाला, जबकि राजकोट टेस्ट की पहली पारी में उन्होंने लगातार 12 ओवर फेंके। धर्मशाला में भी उन्होंने लगातार 15 ओवर किये। कुलदीप ने अपनी इस लंबे स्पैल का राज़ फ़िटनेस को बताया।

उन्होंने कहा, “पिछले डेढ़-दो वर्षों में मैंने अपनी फ़िटनेस पर काफ़ी मेहनत की है। बेहतर फ़िटनेस पाने के लिए मैंने अपनी गेंदबाज़ी और एक्शन में भी काफ़ी बदलाव किया है। इसके अलावा लगातार खेलने से भी मुझे मदद मिली है। अगर आपको लगातार मौक़े मिलते हैं तो आपको अपनी गेंदबाज़ी पर विश्वास और गेम अवेयरनेस भी आता है। आप अपनी गेंदबाज़ी को बेहतर ढंग से समझने लगते हो और आपकी गेंदबाज़ी में पैनापन व नियंत्रण भी आने लगता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।”

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के तीनों फ़ॉर्मैट में बेहतर शुरुआत के बाद एक लंबा समय ऐसा भी आया जब कुलदीप चोट और ख़राब फ़ॉर्म से टीम से बाहर रहे। 2021 में उनके घुटने की सर्जरी हुई और 2022 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की। इस दौरान कुलदीप ने अपने एक्शन और गेंदबाज़ी तकनीक में भी काफ़ी बदलाव किया है। इसका उन्हें फ़ायदा भी हुआ है और वह भारत के तीनों फ़ॉर्मैट के नियमित सदस्य बन गए हैं।

कुलदीप ने बताया, “शुरुआत में एक्शन में बदलाव करना बहुत मुश्किल था। नए एक्शन में लय में आने के लिए मुझे छह से आठ महीने लग गए। लेकिन अब मैं इसका अभ्यस्त हो गया हूं और लुत्फ़ उठा रहा हूं। मैं अब नए-नए प्रयोग भी कर रहा हूं। रांची टेस्ट के दौरान मैंने अपने रन अप में कुछ प्रयोग किए थे और थोड़ा दौड़कर आ रहा था। प्रैक्टिस में मैं इसका लगातार अभ्यास करता हूं। जब भी धीमी विकेट मिलेगी, मैं इस नए रन अप का भी प्रयोग करूंगा।”

इंग्लैंड की जब पारी ख़त्म हुई तो एक दिलचस्प वाकया हुआ। अश्विन ने भी इस पारी के दौरान चार विकेट लिए और यह उनका 100वां टेस्ट भी है। इसलिए कुलदीप चाहते थे कि आख़िर में गेंद के साथ अश्विन टीम को लीड करे। लेकिन अश्विन ने गेंद को कुलदीप की तरफ उछाल दिया। ऐसा दो-तीन बार हुआ और फिर सिराज के हस्तक्षेप के बाद कुलदीप ने ही गेंद के साथ टीम को लीड किया और ड्रेसिंग रूम की तरफ़ गए।

कुलदीप ने कहा, “मैं अश्विन और जड्डू (रवींद्र जाडेजा) भाई के साथ बहुत क्रिकेट खेला हूं और उनसे काफ़ी कुछ सीखता हूं। इस सीरीज़ में भी हैदराबाद टेस्ट से पहले मेरी अश्विन भाई से लंबी बातचीत हुई थी और उन्होंने मुझे माइंडसेट में कुछ बदलाव सुझाए थे। वह एक विशेष खिलाड़ी है और आपको ढेर सारे आईडिया देते हैं। पारी समाप्त होने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि उनके पास ऐसी 35 गेंदें हैं, इसलिए यह गेंद मुझे ही रखना चाहिए।”

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