वाराणसी, 11 फरवरी । वाराणसी, जो भारतीय संस्कृति और शास्त्रों की आध्यात्मिक एवं विद्या परंपरा का केंद्र रही है, एक ऐतिहासिक आयोजन का साक्षी बनी। श्री संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में वेदांत, दर्शन और शास्त्रों के ख्याति प्राप्त विद्वान महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास का भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया।
स्वामी भद्रेशदास जी, जो “श्री स्वामीनारायण भाष्य” के माध्यम से श्री अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन की स्थापना कर चुके हैं, को इस सम्मान से विभूषित किया गया। यह कार्य परम श्रद्धेय प्रमुख स्वामी जी महाराज के आदेश से पूर्ण हुआ, जो वैदिक और शास्त्रीय परंपरा के संवर्धन का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया है।
समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बिहारीलाल शर्मा ने पारंपरिक तरीके से स्वामी भद्रेशदास जी का स्वागत किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनेक प्रतिष्ठित आचार्य एवं विद्वान उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल थे:
• प्रो. रामकृष्ण त्रिपाठी (वेदांत विभागाध्यक्ष)
• प्रो. रमेश प्रसाद (पालि संकायाध्यक्ष)
• प्रो. दिनेश कुमार गर्ग (साहित्य एवं संस्कृत संकायाध्यक्ष)
• प्रो. हरिप्रसाद अनिकारी
• प्रो. शंभू शुक्ला (दर्शन संकायाध्यक्ष)
• प्रो. विजय पांडेय
• प्रो. शैलेश कुमार मिश्रा
• श्री नितिन कुमार आयर
• श्री ज्ञानेन्द्र स्वामी जी
इन सभी विद्वानों ने महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास जी के शास्त्रीय योगदान की सराहना की। उन्होंने श्री अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन के माध्यम से शास्त्रीय भाष्य-परंपरा को आगे बढ़ाने और वैदिक परंपरा की सेवा करने के लिए उनकी प्रशंसा की।
अपने संबोधन में कुलपति प्रो. तबहारीलाल शमाश ने कहा,“भाष्यकार महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास जी संस्कृत विद्या के उत्कृष्ट आचार्य हैं। उनका योगदान ‘श्रीमद्भगवद्गीता’, ‘उपनिषद’ और ‘ब्रह्मसूत्र’ के भाष्य-लेखन के माध्यम से शास्त्रीय परंपरा को समृद्ध करता है। उनका कार्य भारतीय दर्शन की दृष्टि को वैश्विक पटल पर प्रस्तुत करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्री संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, ‘श्री अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन’ को अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर इससे लाभान्वित होगा।”
इस सम्मान समारोह में उपस्थित सभी विद्वानों और श्रोताओं ने भद्रेश स्वामी जी से मार्गदर्शन प्राप्त किया और उनके विद्वत्तापूर्ण विचारों को आत्मसात किया। पूरा वातावरण वेद-मंत्रों और शास्त्रीय संवादों से गूंज उठा, जिससे यह आयोजन काशी की विद्या परंपरा की गरिमा को और अधिक उज्ज्वल करने वाला सिद्ध हुआ।
यह आयोजन न केवल भारतीय शास्त्रीय परंपरा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, बल्कि भारतीय विद्या और संस्कृति के संवर्धन की दिशा में एक सशक्त कदम भी साबित हुआ।
महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास बीएपीएस के एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान और दार्शनिक हैं, जो अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को एक स्वतंत्र वेदांत परंपरा के रूप में स्थापित करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने प्रस्थानत्रयी (श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, और ब्रह्मसूत्र) पर स्वामीनारायण भाष्य की रचना की, जिससे बीएपीएस की दार्शनिक परंपरा को मुख्यधारा के वेदांत विमर्श में एक सुदृढ़ स्थान प्राप्त हुआ।
2017 में काशी विद्वत परिषद के समक्ष उनकी ऐतिहासिक प्रस्तुति के बाद, अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को एक स्वतंत्र वेदांत परंपरा के रूप में मान्यता मिली। “महामहोपाध्याय” की प्रतिष्ठित उपाधि से विभूषित स्वामी भद्रेशदास जी आज भी विद्वानों और आध्यात्मिक साधकों को प्रेरित कर रहे हैं, और बीएपीएस की शास्त्रीय धरोहर को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं।
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