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गौ आधारित खेती है पुण्य, बचत और सतत विकास का आधार, किसानों की हो रही बचत

Cow based farming is the basis of virtue, savings and sustainable development, farmers are getting savings

लखनऊ, 28 दिसंबर । गौ आधारित खेती केवल पर्यावरण संरक्षण का माध्यम नहीं, बल्कि किसानों की आर्थिक समृद्धि और देश की आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन रही है। इससे किसान प्रति एकड़ 10-12 हजार रुपये तक बचा सकते हैं।

प्राकृतिक खेती न केवल गोवंश संरक्षण को बढ़ावा देती है, बल्कि उर्वरकों के आयात पर निर्भरता घटाकर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत करती है। यह जल, जमीन और मानव स्वास्थ्य में स्थायी सुधार का जरिया बन रही है। सरकार द्वारा प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता और प्रमाणीकरण जैसी योजनाओं के माध्यम से इसे किसानों के लिए एक लाभदायक और टिकाऊ विकल्प बनाया जा रहा है।

खेती के लिए सबसे बड़ी लागत बीज और उर्वरक हैं। उत्तर प्रदेश अपनी बीज जरूरतों का केवल आधा ही स्थानीय स्तर पर उत्पादन कर पाता है, जबकि शेष अन्य राज्यों से आयात किया जाता है। वहीं, भारत हर साल उर्वरकों के आयात पर अरबों रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च करता है।

आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023-24 में भारत ने 2127 करोड़ रुपये का यूरिया आयात किया। फास्फेट और पोटाश जैसे उर्वरकों के लिए भारत पूरी तरह आयात पर निर्भर है। गौ आधारित प्राकृतिक खेती इस निर्भरता को कम कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक गाय के गोबर और गोमूत्र से लगभग चार एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती संभव है। यह विधा न केवल किसानों की लागत को कम करती है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाती है।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गौ आधारित कृषि के बड़ी पैरवी करते हैं। उन्होंने इसे बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रमों के माध्यम से समय समय पर जागृत करते रहते हैं।

उत्तर प्रदेश में 2.78 करोड़ किसान और लगभग 2 करोड़ गोवंश हैं। यदि हर किसान एक गाय पालें, तो इससे न केवल उनकी खेती की लागत घटेगी, बल्कि गोवंश का संरक्षण और संवर्धन भी होगा। गौ आधारित खेती में गाय का गोबर और गोमूत्र मुख्य भूमिका निभाते हैं, जिनका उपयोग खाद और कीटनाशक के रूप में किया जाता है। इससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता घटती है और मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है।

गौ आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। हर गो आश्रय को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। किसानों को परंपरागत ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक का उपयोग सिखाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

सरकार चयनित किसानों को तीन वर्षों तक आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है। पहले वर्ष 4800 रुपये, दूसरे वर्ष 4 हजार रुपये और तीसरे वर्ष 3600 रुपये की आर्थिक मदद दी जा रही है। इसके अतिरिक्त, कैटल शेड और गोबर गैस संयंत्र के लिए भी अनुदान दिया जा रहा है। प्राकृतिक उत्पादों को प्रमाणीकरण के जरिए बाजार में स्थापित करने के लिए मंडल स्तर पर आउटलेट्स खोले जा रहे हैं।

कोविड-19 के बाद से लोग स्वास्थ्य को लेकर अधिक जागरूक हुए हैं। जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। लोग अब स्थानीय उत्पादों और क्षेत्रीय स्वाद को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह प्रवृत्ति न केवल स्थानीय स्तर पर जैविक उत्पादों के लिए अवसर पैदा कर रही है, बल्कि निर्यात के भी नए रास्ते खोल रही है।

कृषि वैज्ञानिक डॉ. आदित्य कुमार द्विवेदी का कहना है कि जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार हो रही है। प्राकृतिक खेती के उत्पादों की गुणवत्ता और सेहत पर इसके सकारात्मक प्रभाव के कारण उपभोक्ता इसे तेजी से अपना रहे हैं।

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