संदीप कुमार को याद है कि गुरुवार को जब चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी, तब उन्होंने एक लड़के की चीखें सुनी थीं और उनका डिब्बा धूल से भर गया था।
स्लीपर कोच में यात्रा कर रहे संदीप कुमार ने कहा, “मुझे मेरे सामने वाली बर्थ पर बैठे एक लड़के की तेज चीख याद है। एक पल के लिए कोच धूल से भर गया और चारों तरफ अंधेरा छा गया। मुझे याद नहीं कि अगले कुछ सेकंड में क्या हुआ। मुझे सिर्फ चीखने की आवाज याद है और यह कि कुछ यात्रियों ने मेरा हाथ खींचा और मुझे खिड़की से बाहर निकलने में मदद की।”
गुरुवार को लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर दूर गोंडा के पास मोतीगंज क्षेत्र में ट्रेन के कम से कम आठ डिब्बे पटरी से उतर गए, जिसमें दो यात्रियों की मौत हो गई और 34 घायल हो गए।
चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही पैसेंजर ट्रेन दोपहर 1.58 बजे गोंडा स्टेशन से गुजरी। इसका अगला स्टॉपेज बस्ती था, लेकिन मोतीगंज रेलवे स्टेशन पार करते ही यह पटरी से उतर गई।
ट्रेन के बी2 कोच में यात्रा कर रहे 35 वर्षीय मनीष तिवारी ने बताया, ”मैं खिड़की के पास बैठा था, तभी मुझे तेज आवाज सुनाई दी।” तिवारी ने बताया कि उन्हें झटका महसूस हुआ, जिससे वे कोच की छत पर गिर गए।
बिहार के छपरा जाने वाले एक अन्य यात्री दिलीप सिंह ने कहा, “गोंडा से ट्रेन छूटने के बाद मैं झपकी लेने के लिए ऊपरी बर्थ पर चढ़ गया। मुझे बस इतना याद है कि दूसरी तरफ की ऊपरी बर्थ पर गिरने से पहले मुझे जोरदार झटका लगा था। मुझे उम्मीद थी कि यह एक सपना होगा, लेकिन ऐसा नहीं था।”
राजकुमारी (55) ने मौके पर पीटीआई-भाषा से बात करते हुए कहा कि वह अपने बेटे के साथ स्लीपर कोच में चंडीगढ़ से सीवान (बिहार) जा रही थीं, तभी ट्रेन पटरी से उतर गई।
उन्होंने कहा, “हम बैठे थे, तभी अचानक ऐसा लगा जैसे भूकंप आ गया हो। जब ट्रेन हिलने लगी, तो मुझे एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है।”
ट्रेन की एक अन्य यात्री सुनीता सेठिया (42), जो चंडीगढ़ से गोरखपुर जा रही थीं, ने बताया कि घटना के समय वह शौचालय गयी थीं।
उन्होंने बताया, “जैसे ही मैं बाहर आई, मुझे एक जोरदार झटका लगा। सौभाग्य से दोनों गेट बंद थे। मैं गेट से टकरा गई। अगर गेट खुला होता तो मैं सीधे नीचे गिर जाती। गांव और आस-पास के लोगों ने हमारी बहुत मदद की।”
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), मनकापुर में भर्ती शौकत अंसारी ने बताया कि वह गोरखपुर जा रहे थे।
उन्होंने बताया कि उनके चेहरे पर चोटें आईं हैं, जबकि उनके पिता की पीठ पर चोटें आई हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि ट्रेन को क्या हुआ।
डिब्बों के पटरी से उतरकर बाईं ओर पलटने की तेज आवाज के बाद यात्रियों, विशेषकर बच्चों की तेज चीखें सुनाई देने लगीं।
यात्री झुके हुए स्लीपर कोच की आपातकालीन खिड़कियों और दरवाजों से बाहर निकलने लगे और कुछ लोग अपना सामान बाहर निकालने के लिए पीछे चले गए। एसी कोच में यात्रियों ने एक-दूसरे की मदद से खिड़कियों के शीशे तोड़कर घायलों या फंसे हुए लोगों को बाहर निकाला।
यात्रियों को ट्रैक के दोनों ओर खेतों में घुटनों तक पानी से होकर पास की सड़क तक पहुंचना पड़ा। दुर्घटना से सदमे में आए या घायल हुए अन्य लोग ट्रैक पर ही बैठकर बचाव का इंतजार कर रहे थे।
जब पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचीं, तो अधिकारियों ने घोषणाएं कीं और लोगों से क्षतिग्रस्त डिब्बों से दूर रहने को कहा। बचावकर्मियों ने इलाके की घेराबंदी कर दी और क्षतिग्रस्त डिब्बों में घुसकर यह सुनिश्चित किया कि कोई यात्री पीछे न छूट जाए।
सीएचसी के चिकित्सक डॉ. सत्य नारायण ने बताया कि लगभग 25 लोगों को उनके अस्पताल लाया गया था।
उन्होंने बताया, “उनमें से एक की पहले ही मौत हो चुकी है। घायलों का इलाज कराया गया है। तीन लोग गंभीर रूप से घायल हैं, जिन्हें गोंडा जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया है।”
कुछ दूरी पर खड़ी दूसरी टीम ने घायल यात्रियों को करीब 300 मीटर दूर एक एप्रोच रोड पर खड़ी एंबुलेंस की ओर निर्देशित किया। गंभीर रूप से घायल यात्रियों को स्ट्रेचर पर एंबुलेंस तक ले जाया गया।
जिला प्रशासन ने यात्रियों को उनके स्थानों तक पहुंचाने के लिए बसों की भी व्यवस्था की।
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