नई दिल्ली, दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को माकपा नेता वृंदा करात की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें 2020 के सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान कथित भड़काऊ भाषण के लिए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा सांसद परवेश वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया गया था।
याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए, न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता दंड प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित तंत्र का पालन करने में विफल रहीं हैं।
अगस्त 2020 में, अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट विशाल पाहुजा ने पूर्व मंजूरी की कमी के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत दायर वाम नेता के आवेदन को खारिज कर दिया था।
माकपा नेता वृंदा करात और के. एम. तिवारी ने याचिका दायर कर संसद मार्ग पुलिस स्टेशन से दोनों के खिलाफ दुश्मनी को बढ़ावा देने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और आपराधिक धमकी देने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की थी।
अदालत ने नोट किया, “शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत में कथित अपराधों के लिए प्रतिवादियों पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी (केंद्र सरकार) से कोई पूर्व मंजूरी नहीं ली गई है। इसलिए, कानून की स्थापित स्थिति को देखते हुए, शिकायत को खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि कानून की नजर में यह मान्य नहीं है।”
दिल्ली में 27 जनवरी, 2020 को ठाकुर द्वारा संबोधित एक सार्वजनिक रैली में ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सा.. को’ जैसे एक कथित भड़काऊ नारे के बाद भाजपा नेता के खिलाफ आवेदन दायर किया गया था। परवेश वर्मा ने भी कथित तौर पर भड़काऊ टिप्पणी की थी, जिन पर कार्रवाई की मांग की गई थी।
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