इस साल पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी के बावजूद कुरुक्षेत्र की वायु गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में बनी हुई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, शहर में सोमवार को पीएम 2.5 का औसत स्तर 283 दर्ज किया गया, जो रविवार के 344 से बेहतर है, लेकिन अभी भी संतोषजनक नहीं है।
पर्यावरण विशेषज्ञ लगातार खराब वायु गुणवत्ता के लिए पराली जलाने के बजाय स्थानीय प्रदूषण स्रोतों और प्रतिकूल मौसम की स्थिति को जिम्मेदार मानते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रविवार तक कुरुक्षेत्र में पराली जलाने की केवल आठ घटनाएँ दर्ज की गईं। इनमें से चार की पुष्टि धान के अवशेष जलाने से हुई, जबकि बाकी की पुष्टि पराली जलाने से हुई।
कृषि उपनिदेशक डॉ. करम चंद ने कहा, “HARSAC द्वारा कुल आठ खेतों में आग लगने की सूचना दी गई थी, जिनमें से चार धान के अवशेषों में लगी थीं और सभी चार मामलों में कार्रवाई की गई, जिसमें एफआईआर दर्ज करना, पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाना और रेड एंट्री दर्ज करना शामिल है। खेतों में कड़ी निगरानी के परिणामस्वरूप खेतों में आग लगने की घटनाओं में कमी आई। जैसा कि आंकड़े बताते हैं, खराब वायु गुणवत्ता के लिए खेतों में आग और किसानों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि इसका समग्र परिस्थितियों पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।”
हालांकि, पर्यावरणविदों ने अनियंत्रित स्थानीय गतिविधियों के कारण वायु की गुणवत्ता में गिरावट पर चिंता व्यक्त की है। ग्रीन अर्थ एनजीओ के कार्यकारी सदस्य डॉ. नरेश भारद्वाज ने कहा, “पेड़ों की बेतहाशा कटाई, निरंतर निर्माण गतिविधियां, कचरा जलाना और वाहनों का आवागमन यहां की खराब वायु गुणवत्ता के लिए प्रमुख कारण हैं।”
उन्होंने ब्रह्म सरोवर के पास कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की 60 एकड़ ज़मीन पर वन विभाग द्वारा लगाए गए हज़ारों यूकेलिप्टस के पेड़ों को काटने के प्रस्ताव पर भी चिंता जताई। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “हमने प्रशासन से पेड़ों को न काटने का अनुरोध किया है क्योंकि ये शहर के लिए फेफड़े और पक्षियों के लिए आश्रय का काम करते हैं। अगर पेड़ काटे गए, तो कुरुक्षेत्र में वायु की गुणवत्ता और बिगड़ जाएगी। यह पर्यावरण के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी, जिससे पवित्र शहर में पारिस्थितिक असंतुलन पैदा होगा।”
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) के अधिकारियों ने भी शहर की हवा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रेखांकित किया। वरिष्ठ पर्यावरण अभियंता निर्मल कश्यप ने कहा, “इस साल राज्य में पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है, लेकिन सिर्फ़ पराली जलाना ही वायु प्रदूषण का एकमात्र कारण नहीं है। जलवायु परिस्थितियाँ भी इसमें अहम भूमिका निभाती हैं। चूँकि मौसम परिवर्तन के दौर में है, इसलिए वायु प्रवाह कम हो गया है, जिससे प्रदूषकों का फैलाव कम हुआ है।”
उन्होंने कहा कि सड़क की धूल, निर्माण गतिविधियाँ, वाहनों का आवागमन और उद्योग वर्तमान में प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। कश्यप ने कहा, “चूँकि तापमान दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है और वायु प्रवाह कमज़ोर है, जिससे प्रदूषकों का फैलाव मुश्किल हो रहा है, इसलिए आने वाले दिनों में वायु गुणवत्ता में और गिरावट आ सकती है।”


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