चुनाव की घोषणा के बावजूद, क्या 13 सितंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा विधानसभा सत्र बुलाना अनिवार्य है? मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने शुक्रवार को घोषणा की कि हरियाणा में 90 विधानसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव एक ही चरण में 1 अक्टूबर को होंगे और मतों की गिनती 4 अक्टूबर को होगी।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के अधिवक्ता हेमंत कुमार ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अनुपालन में, मौजूदा राज्य विधानसभा का सत्र, भले ही एक दिन के लिए ही क्यों न हो, 13 सितंबर 2024 से पहले बुलाना अनिवार्य है, क्योंकि यह भारत के संविधान के उपरोक्त अनुच्छेद के तहत अनिवार्य है।
उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि विधानसभा के दो सत्रों के बीच 6 महीने का अंतराल नहीं होना चाहिए।”
हेमंत कुमार ने कहा कि हरियाणा के लगभग 58 वर्ष के इतिहास में यह पहली बार होगा कि चुनाव आयोग द्वारा अगले विधानसभा आम चुनावों की घोषणा के बाद वर्तमान राज्य विधानसभा का सत्र बुलाना पड़ेगा।
उन्होंने कहा, “जहां तक सत्र बुलाने और इसकी तिथि का सवाल है, अभी अंतिम सत्र पूरा नहीं हुआ है। अगर निर्णय की बात है तो शनिवार 17 अगस्त को सुबह नौ बजे मुख्यमंत्री नायब सैनी की अध्यक्षता में प्रस्तावित हरियाणा मंत्रिपरिषद (कैबिनेट) की बैठक में इस संबंध में निर्णय लिया जा सकता है।”
हेमंत ने आगे कहा कि हाल ही में राज्य सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 213 (1) के तहत हरियाणा के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित कुल 5 अध्यादेश प्राप्त किए हैं, जो राज्य में अनुबंध आधार पर काम कर रहे कर्मचारियों को राहत देते हैं। कर्मचारियों को सेवा में सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक अध्यादेश, राज्य के शहरी निकायों (नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिकाओं) और पंचायती राज संस्थाओं में पिछड़ा वर्ग ब्लॉक बी के व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने के लिए तीन अध्यादेश और हरियाणा शामलात (संयुक्त) भूमि विनियमन (संशोधन) अध्यादेश शामिल हैं। इन सभी को राज्य के राज्यपाल द्वारा 14 अगस्त को मंजूरी दी गई थी, जिनमें से अनुबंध कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा के बारे में राजपत्र अधिसूचना 14 अगस्त की शाम को ही प्रकाशित की गई थी, जबकि बाकी चार अध्यादेश 16 अगस्त को राज्य सरकार के राजपत्र में अधिसूचना के रूप में प्रकाशित किए गए थे (हालांकि आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले)।
अब जबकि हरियाणा विधानसभा का आगामी सत्र 13 सितम्बर से पहले बुलाना संवैधानिक बाध्यता है, तो वर्तमान सत्तारूढ़ नायब सैनी सरकार की यह जिम्मेदारी होगी कि वह राज्यपाल द्वारा जारी उपरोक्त पांचों अध्यादेशों को आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक के रूप में प्रस्तुत कर सदन से पारित करवाए। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या उपरोक्त सभी अध्यादेश राज्य विधानसभा के आगामी सत्र में बिना किसी बाधा के पारित हो पाते हैं या नहीं।
हेमंत ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 213 (2) के तहत राज्यपाल से स्वीकृति मिलने के बाद प्रख्यापित अध्यादेश, राज्य विधानसभा के अगले सत्र के आहूत होने की तिथि से छह सप्ताह से अधिक समय तक प्रभावी नहीं रहेगा। हालांकि, यदि उस सत्र की अवधि के दौरान वह अध्यादेश विधेयक के रूप में सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है, तो वह राज्य का वैध कानून बन सकता है और प्रभावी रह सकता है।
Leave feedback about this