महाकुंभ नगर, 17 जनवरी । तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर सनातन आस्था और संस्कृति के महापर्व महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। प्रयागराज का महाकुंभ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुंभ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है।
प्रयागराज महाकुंभ में मानवता के महापर्व में देश के कोने-कोने से अलग-अलग भाषा, जाति, पंथ, संप्रदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु साधु संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भंडारों में प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। एकता, समता, समरसता का महाकुंभ सनातन संस्कृति के उद्दात मूल्यों का सबसे बड़ा मंच है।
महाकुंभ न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता में समाई हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है। जिसे दुनिया भर से आए पर्यटक और पत्रकार देखकर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाते। कैसे अलग-अलग भाषा-भाषी, रहन-सहन, रिति-रिवाज को मानने वाले एकता के सूत्र में बंधे संगम में स्नान करने चले आते हैं।
साधु-संन्यासियों के अखाड़े हों या तीर्थराज के मंदिर और घाट, बिना रोक-टोक श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में चल रहे अनेकों अन्न भंडार सभी भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए दिन-रात खुले हैं। जहां सभी लोग एक साथ पंगत में बैठकर प्रसाद और भोजन ग्रहण कर रहे हैं। महाकुंभ मेले में भारत की विविधता इस तरह समरस हो जाती है कि उनमें किसी तरह का भेद कर पाना संभव नहीं है।
महाकुंभ में सनातन परंपरा को मानने वाले शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासीन, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी से लेकर भारशिव, अघोरी, कपालिक सभी पंथ और संप्रदायों के साधु-संत एक साथ मिलकर अपने-अपने रिति-रिवाजों से पूजन-अर्चन और गंगा स्नान कर रहे हैं। संगम तट पर लाखों की संख्या में कल्पवास करने आए श्रद्धालु देश के कोने-कोने से अलग-अलग जाति, वर्ग, भाषा को बोलने वाले हैं। यहां सभी साथ मिलकर महाकुंभ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं।
महाकुंभ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी तरह के भेदभाव भुलाकर एक साथ एक भाव में संगम में डुबकी लगा रहे हैं। महाकुंभ और मां गंगा नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली किसी में भेद नहीं करती। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समता, एकता कि परंपरा प्रयागराज में संगम तट पर महाकुंभ में अनवरत चलती आ रही है। सही मायनों में प्रयागराज महाकुंभ एकता, समता, समरसता के महाकुंभ का सबसे बड़ा उदाहरण है।