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डॉ. अटल और चीन की सहायता करने वाला भारतीय डॉक्टरों का दल

बीजिंग,  इस साल 1 दिसंबर को डॉक्टर एम.एम.अटल की 65वीं पुण्यतिथि है। वे चीन की मदद करने वाले भारतीय चिकित्सा दल के लीडर थे ,जो जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीनी जनता के साथ खड़े रहे। चीन भारत संबंधों के इतिहास में उन्होंने असाधारण योगदान दिया था। अब तक उनकी भावना प्रासंगिक है।

डॉक्टर अटल का जन्म अक्तूबर 1886 में बिहार में हुआ था। उन्होंने ब्रिटेन के एडिंगबर्ग विश्वविद्यालय में पढ़कर मेडिकल डॉक्टर डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ब्रिगेड के रेड क्रॉस दल में शामिल होकर भारत की ओर से स्पैनिश जनता के फासिस्ट विरोधी युद्ध का समर्थन किया था। जुलाई 1937 में चीन में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध चौतरफा तौर पर शुरू होने के बाद भारत में चीन की सहायता की लहर भी उभरी। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू की अपील पर अगस्त 1938 में चीन की सहायता के लिए भारतीय चिकित्सा दल स्थापित हुआ ,जो पांच सदस्यों से गठित था ।डॉक्टर अटल इस चिकित्सा दल के लीडर थे। उल्लेखनीय बात है कि वे नेहरू की पत्नी के बड़े भाई भी थे। बाकी चार सदस्य एम.चोलकर ,बी.के.बसु , द्वारकानाथ कोटनिस और डी. मुखर्जी थे।

1 सितंबर को भारतीय चिकित्सा दल एक एंबुलेंस ,एक चिकित्सा ट्रक ,एक एक्स रे मशीन और 60 डिब्बे दवाइयों और शल्य उपकरणों के साथ मुंबई से चीन के लिए रवाना हुआ। दक्षिण चीन के क्वांगचो पहुंचते समय उनका जोरदार स्वागत हुआ। इसके बाद वे लगातार चीन के हानखो ,यीछांग और छोंगछिंग जैसे शहरों में कार्यरत रहे। वर्ष 1939 के शुरू में वे सीपीसी के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी केंद्र यान आन गए। उनके आगमन के लिए यान आन में एक भव्य स्वागत समारोह आयोजित किया गया था। अध्यक्ष माओ त्सेतुंग ने इसमें भाग लिया और भारतीय डॉक्टरों के साथ खाना भी खाया। इसके बाद उन्होंने यान आन के अस्पताल में काम किया ।जुलाई 1939 में सीपीसी नेता चो एनलाई घोड़े से अचानक गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गए। डॉक्टर अटल और कोटनिस ने खुद चो का इलाज किया।

नवंबर 1939 में अनेक बार अनुरोध करने के बाद डॉक्टर अटल, कोटनिस और बसु को उत्तर चीन के थाई हांग पहाड़ के अग्रिम मोर्चा जाने की अनुमति मिली। दिसंबर 1939 में वे थाई हांग पहाड़ में स्थित सीपीसी के नेतृत्व वाली आठवीं रूट आर्मी के मुख्यालय पहुंचे। वहां अत्यंत कठिन और खतरनाक स्थिति में उन्होंने चीनी सेना और जनता के साथ जापानी आक्रमणकारियों के साथ लड़ाई लड़ी । ज्यादा काम और कुपोषण के कारण डॉक्टर अटल बीमार हो गये और अगले साल उनको अग्रिम मोर्चे से जाना पड़ा और बाद में वे स्वदेश लौटे। लगभग दो साल में डॉक्टर अटल और चीनी जनता के बीच गहरी मित्रता हो गयी।

नये चीन की स्थापना के बाद अटल ने फिर से वर्ष 1951 में चीन की यात्रा की। सितंबर 1957 में वे और चिकित्सा दल के अन्य सदस्य चीन की यात्रा पर पेइचिंग पहुंचे। लेकिन अचानक बीमार होने पर डॉ. अटल को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चो एनलाई ने कई बार अस्पताल जाकर उनको देखा ।1 दिसंबर 1957 को डॉ. अटल का चीन में निधन हो गया। निधन के बाद अटल जी की वसीयत के मुताबिक उनकी आधी अस्थियां गंगा नदी में और आधी अस्थियां चीन की पीली नदी में विसर्जित की गयीं। चो एनलाई ने उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। चीनी जन वैदेशिक मित्रता संघ ने उत्तर चीन के शीच्याचुआंग शहर में स्थित उत्तरी चीन कमान के शहीद समाधि पार्क में डॉक्टर अटल के लिए एक स्मारक स्थापित किया।

इस तरह डॉक्टर अटल और उनके नेतृत्व वाले चिकित्सा दल ने चीन-भारत मित्रता के इतिहास में एक शानदार अध्याय लिखा। जब भी चीन भारत दोस्ती की चर्चा होती है ,तो भारतीय चिकित्सा दल का उल्लेख जरूर होता है।

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