उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने आज समाज से आह्वान किया कि वे गीता के शाश्वत आह्वान को आत्मसात करें, जिसमें धार्मिकता से कार्य करने, ज्ञान प्राप्त करने, शांति अपनाने तथा मानवता के कल्याण में योगदान देने का आह्वान किया गया है।
वह कुरुक्षेत्र में ‘अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन’ के अवसर पर एक सभा को संबोधित कर रहे थे। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत आयोजित इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए गीता विद्वान स्वामी ज्ञानानंद सहित विभिन्न तीर्थों से अनेक संत कुरुक्षेत्र पहुंचे थे
उपराष्ट्रपति ने कहा, “कुरुक्षेत्र अधर्म पर धर्म की महान विजय का प्रतीक है। कुरुक्षेत्र को वेदों की भूमि भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेशित गीता एक धार्मिक ग्रंथ से कहीं बढ़कर है; यह धार्मिक जीवन, साहसी कार्यों और प्रबुद्ध चेतना के लिए एक सार्वभौमिक मार्गदर्शिका है।”
चरित्र निर्माण पर ज़ोर देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, “किसी भी मनुष्य के लिए एक मज़बूत चरित्र का निर्माण सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। चरित्र, धन-संपत्ति या अन्य सांसारिक उपलब्धियों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। भगवद्गीता एक सद्गुणी और दृढ़ चरित्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है। भगवान कृष्ण अर्जुन को याद दिलाते हैं कि चरित्र की दृढ़ता उद्देश्य की स्पष्टता, मन की स्थिरता और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता से उत्पन्न होती है। कृष्ण हम सभी से कर्म के फल की आसक्ति के बिना कर्म करने का आह्वान भी करते हैं।”
“भगवान कृष्ण का संदेश, धर्म द्वारा निर्देशित कर्म पर सदैव केंद्रित रहना, आपके सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन की कुंजी है। यह भूमि हमें प्रतिबद्धता, पवित्र इरादे और आंतरिक स्वतंत्रता के साथ कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है, बिना सफलता को बढ़ा-चढ़ाकर और असफलता को हमें कमज़ोर किए। भगवान कृष्ण शाश्वत संदेश देते हैं कि जीवन छोटा है, संसार अनित्य है, अहंकार रहित जीवन जिएं, विनम्रता और समर्पण के साथ अपने कर्तव्य का पालन करें और यथासंभव लोगों की सेवा करें। तेज़ी से बदलते और अनिश्चितता भरे युग में, ये शिक्षाएँ एक मार्गदर्शक प्रकाश प्रदान करती हैं।”
उपराष्ट्रपति ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि तेजी से बदलते इस युग में गीता व्यक्तियों, समाजों और राष्ट्रों को शांति और सद्भाव की दिशा में मार्गदर्शन करती रहेगी। उन्होंने इसकी स्थायी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने महोत्सव की सराहना करते हुए कहा कि यह उन मूल्यों को पुष्ट करता है जिन्होंने सदियों से भारत को जीवित रखा है – धर्म, कर्तव्य, आत्मानुशासन और उत्कृष्टता की खोज। उन्होंने कहा कि ये मूल्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा व्यक्त आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोण का आधार हैं। उन्होंने कहा, “हमें अपने लिए काम करना होगा और साथ ही समाज और दूसरों के लिए भी काम करना होगा। गीता युगों-युगों के लिए है। आइए, हम गीता के इस शाश्वत आह्वान को आत्मसात करने का संकल्प लें कि हम धर्म के साथ कार्य करें, ज्ञान प्राप्त करें, शांति को अपनाएँ और मानवता के कल्याण में योगदान दें।”

