हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और राज्य प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि किसी भी व्यक्ति या संस्था को स्पीति क्षेत्र के लांगजा गांव सहित हिमाचल प्रदेश के किसी भी हिस्से से अवैध रूप से जीवाश्म निकालने, एकत्र करने, व्यापार करने या निर्यात करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने अधिवक्ता पूनम गहलोत द्वारा दायर जनहित याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें स्पीति क्षेत्र के लांगजा गांव में जीवाश्मों के अवैध निष्कर्षण और व्यापार के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया था।
अदालत ने केंद्रीय खान एवं खनिज मंत्रालय के सचिव, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राज्य के वन एवं वन्यजीव विभाग के प्रधान सचिव, लाहौल एवं स्पीति के उपायुक्त, पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग के निदेशक, पर्यावरण विभाग के निदेशक तथा हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता को भी नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 31 दिसंबर की तारीख तय की है।
स्पीति घाटी के लालुंग, मुद, कोमिक, हिक्किम और लांगजा गांवों के पास की पहाड़ियों में समुद्री जीवाश्म पाए जाते हैं। भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि ये जीवाश्म विशाल हिमालय से भी पुराने हैं और इन पर काफी शोध हो चुका है।
भारत में जीवाश्मों का संग्रह और निजी स्वामित्व आम तौर पर अवैध है। पुरावशेष और कला खजाने अधिनियम, 1972, पुरावशेषों के उत्खनन, संरक्षण और व्यापार को नियंत्रित करता है, जिसमें जीवाश्म भी शामिल हैं। कानून के अनुसार, भारत में पाए जाने वाले जीवाश्मों को राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है और सरकार द्वारा संरक्षित किया जाता है। जीवाश्मों का अनधिकृत संग्रह, उत्खनन या व्यापार निषिद्ध है और इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं। इस कानून का प्राथमिक लक्ष्य वैज्ञानिक अध्ययन और सार्वजनिक शिक्षा के लिए भारत की जीवाश्म विरासत की रक्षा और संरक्षण करना है।
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