N1Live Haryana व्याख्याकार: क्या नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लंबित आपराधिक मामलों को प्रभावित करेगी
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व्याख्याकार: क्या नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लंबित आपराधिक मामलों को प्रभावित करेगी

Explainer: Will the new Indian Civil Defence Code affect pending criminal cases

जाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न का समाधान किया है: क्या 1 जुलाई, 2024 से पहले दर्ज किए गए आपराधिक मामले पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) या नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत शासित होंगे? न्यायालय ने माना है कि इस तिथि से पहले शुरू किए गए सभी मामले नए कानून लागू होने के बाद भी सीआरपीसी के तहत जारी रहेंगे।

यह मुद्दा इसलिए उठा क्योंकि उच्च न्यायालय की दो एकल पीठों ने परस्पर विरोधी राय दी। एक ने फैसला सुनाया कि बीएनएसएस ने सीआरपीसी की जगह ले ली है और इसे 1 जुलाई से सभी मामलों में लागू किया जाना चाहिए। दूसरे ने कहा कि पुराने कानून के तहत दर्ज मामलों को सीआरपीसी के तहत आगे बढ़ना चाहिए। बहस को निपटाने के लिए मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया।

न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि अपराध या एफआईआर दर्ज होने के समय प्रक्रियात्मक कानून यह निर्धारित करता है कि मामला कैसे आगे बढ़ेगा। इसका मतलब है कि 1 जुलाई, 2024 तक लंबित कोई भी मुकदमा, अपील, पूछताछ या जांच सीआरपीसी के तहत जारी रहेगी। बीएनएसएस पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होता है, जिसका अर्थ है कि यह पुराने कानून के तहत शुरू की गई कार्यवाही को प्रभावित नहीं करता है। अपराध या एफआईआर दर्ज होने की तारीख तय करती है कि कौन सा प्रक्रियात्मक कानून लागू होगा।

अदालत ने बीएनएसएस में व्यक्त प्रावधानों पर भरोसा किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सीआरपीसी के तहत चल रहे परीक्षण, पूछताछ और जांच उसी ढांचे के तहत जारी रहेंगी।

इसका आपराधिक मामलों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह निर्णय बहुत ज़रूरी स्पष्टता प्रदान करता है। यदि कोई मामला 1 जुलाई, 2024 से पहले दर्ज किया गया था, तो उसमें सीआरपीसी प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा, भले ही मुकदमा बीएनएसएस लागू होने के बाद शुरू हो। यह चल रहे मामलों में व्यवधान को रोकता है और प्रक्रियात्मक स्थिरता सुनिश्चित करता है।

आरोपी व्यक्तियों के लिए इसका क्या मतलब है अदालत के सामने एक अहम सवाल यह था कि क्या पुराने कानून के तहत आरोपी को सीआरपीसी या बीएनएसएस के तहत राहत मांगनी चाहिए। अदालत ने फैसला सुनाया कि चूंकि बीएनएसएस पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होता है, इसलिए 1 जुलाई से पहले शुरू किए गए मामलों के लिए सभी प्रक्रियात्मक पहलू- जांच, परीक्षण और अपील- सीआरपीसी द्वारा शासित होंगे।

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