फरीदाबाद, 25 जून 700 से ज़्यादा खरीदारों के लिए बिल्डर की सोसायटी में घर का मालिक होना 14 साल बाद भी सपना ही बना हुआ है। लगभग 60 प्रतिशत राशि का भुगतान करने के बावजूद उन्हें अभी तक घर का कब्ज़ा नहीं मिला है।
घर खरीदारों ने 142 करोड़ रुपये का भुगतान किया खरीदारों द्वारा भुगतान की गई न्यूनतम अनुमानित राशि 142 करोड़ रुपये है। 712 आवेदकों द्वारा औसतन 20 लाख रुपये जमा किए गए हैं और 350 फ्लैट बिना बिके पड़े हैं। 868 लो-राइज फ्लोर में से लगभग 70 प्रतिशत आधे-अधूरे हालत में हैं और लगभग 125 परिवार वहां रह रहे हैं। हाई-राइज सेक्शन का निर्माण नींव स्तर के बाद छोड़ दिया गया था। यहां आवेदकों ने 15 लाख रुपये से 44 लाख रुपये तक खर्च किए।
घर खरीदने के इच्छुक जीतेंद्र भड़ाना कहते हैं, ”बिल्डर दिवालिया हो चुका है और मामला कई सालों से नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में लंबित है।” 2014 से कोई निर्माण नहीं हुआ है और घर खरीदने वालों की पीड़ा जारी है क्योंकि उन्हें वित्तीय नुकसान और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
विधवा और सेवानिवृत्त शिक्षिका रेणु वधावन (63) कहती हैं, “मेरी मेहनत की कमाई ठगी गई है। मैंने पहले ही 75 प्रतिशत कीमत चुका दी है।” उन्होंने फ्लैट के लिए 18 लाख रुपए अलग रखने के लिए अपनी जीवन भर की बचत में से पैसे निकाले थे।
एक अन्य आवेदक सुनील कासवान कहते हैं, “हालांकि लगभग 2,200 फ्लैटों का निर्माण हाई-राइज, लो-राइज और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के तहत किया जाना था, लेकिन केवल मुट्ठी भर आवेदकों को ‘अधूरे’ लो-राइज फ्लोर का कब्जा मिला, और वह भी उचित दस्तावेजों के बिना।”
उन्होंने कहा, ”लगभग 700 आवेदकों ने ऊंची इमारत वाली परियोजना के लिए लागत का 50-95 प्रतिशत भुगतान किया है, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई है क्योंकि मामला दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया (आईपीआर) में है।” उन्होंने आगे कहा, ”मैं अभी भी मौजूदा परिस्थितियों में बहुत कम उम्मीद के साथ ऋण की किस्तें चुका रहा हूं।” उनका दावा है कि कोई रास्ता न होने के कारण प्रभावित परिवार विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर सकते हैं।
जबकि आईआरपी (एनसीएलटी) से कोई भी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं था, जिला नगर योजनाकार (डीटीपी) अमित मधोलिया ने बताया कि चूंकि मामला एनसीएलटी के पास है, इसलिए नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग की इसमें कोई भूमिका नहीं है। ऐसे मामलों में विभाग को ईडीसी (बाहरी विकास) और आईडीसी (आंतरिक विकास) शुल्क का नुकसान उठाना पड़ता है।