जैविक नियंत्रण एजेंटों का उपयोग करके कीटों और बीमारियों के प्रबंधन पर जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए, डॉ वाईएस परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय (यूएचएफ), नौणी के कीट विज्ञान विभाग द्वारा लाहौल और स्पीति के सुमनम और मूरिंग गांवों में दो किसान प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए।
ये कार्यक्रम जैविक नियंत्रण पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) के तत्वावधान में आयोजित किए गए, जिसमें 30 महिला किसानों सहित 70 किसानों ने भाग लिया।
कीट विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष तथा परियोजना के प्रमुख अन्वेषक डॉ. सुभाष चंद्र वर्मा ने सेब और अन्य फलों की फसलों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीटों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और किसानों को कीट प्रबंधन के लिए पर्यावरण-अनुकूल और जैविक तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने जोर देकर कहा, “लाहौल के प्राचीन पर्यावरण को कृषि रसायनों के उपयोग को कम करके और जैविक नियंत्रण एजेंटों और जैव कीटनाशकों की ओर स्थानांतरित करके संरक्षित किया जाना चाहिए, जो न केवल फसलों की रक्षा करते हैं बल्कि जैव विविधता संरक्षण में भी योगदान करते हैं।”
उन्होंने सेब, मटर और अन्य फसलों को आमतौर पर प्रभावित करने वाले कीटों के बारे में विस्तार से बताया, साथ ही उनके जैव-नियंत्रण विकल्पों के बारे में भी बताया तथा प्राकृतिक कृषि पद्धतियों पर भी चर्चा की, जिन्हें क्षेत्र के किसान टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिए आसानी से अपना सकते हैं।
कीट विज्ञानी डॉ. विश्व गौरव सिंह चंदेल ने किसानों को लाभकारी कीटों के महत्व के बारे में जानकारी दी और बताया कि कैसे इनका संरक्षण प्राकृतिक रूप से फसलों को कीटों से बचाने में मदद कर सकता है। लाहौल और स्पीति की उप निदेशक (बागवानी) डॉ. मीनाक्षी शर्मा और बागवानी विकास अधिकारी गीतेश कुमार ने किसानों से बातचीत की और राज्य सरकार द्वारा किसानों के लिए शुरू की गई विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी दी।
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