N1Live National डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा व अन्य माओवादी लिंक मामले में बरी (लीड-1)
National

डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा व अन्य माओवादी लिंक मामले में बरी (लीड-1)

Former DU professor GN Saibaba and others acquitted in Maoist link case (Lead-1)

नागपुर (महाराष्ट्र), 5 मार्च । बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा और पांच अन्य आरोपियों को माओवादी से लिंक मामले में दोषमुक्त कर दिया। 2014 में लोअर कोर्ट ने इन सभी को माओवादी से संबंध होने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मिकी एस.ए. मेनेजेस की खंडपीठ ने 2017 के गढ़चिरौली सत्र न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कोर्ट ने 6 आरोपियों को दोषी ठहराया था।

54 वर्षीय साईबाबा को 2014 में गिरफ्तार किया गया था, जो कि मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं, लेकिन फिलहाल नागपुर जेल में बंद हैं।

महेश तिर्की, विजयनान तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, प्रशांत राही और पांडु पोरा नरोटे के साथ गिरफ्तारी के बाद साईबाबा को माओवादी से लिंक और देश के खिलाफ युद्ध रचने के आरोप में दोषी ठहराया गया था।

न्यायाधीशों ने मंगलवार को सभी को 50,000 रुपए के जमानत बांड जमा करने के बाद जेल से रिहा करने का निर्देश दिया, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की याचिका पर फैसला नहीं करता।

गढ़चिरोली कोर्ट में सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने दलील दी थी कि साईबाबा और दूसरे अन्य आरोपी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) और उसकी अनुशांगिक संगठन क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा के साथ मिलकर काम करते हैं।

पुलिस ने साईबाबा के पास से कई सबूत एकत्रित किए जिसमें माओवादी साहित्य, पर्चे, इलेक्ट्रॉनिक सामग्री और अन्य चीजें ‘राष्ट्र-विरोधी’ सामाग्री शामिल थी।

उन्होंने कथित तौर पर सक्रिय माओवादी समूहों के लिए 16 जीबी का एक मेमोरी कार्ड भी सौंपा था।

जज सूर्यकांत शिंदे की गढ़चिरोली कोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद साईबाबा ने मुंबई हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) में इस फैसले को चुनौती दी। जज रोहित बी. देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने 14 अक्टूबर 2022 को उन्हें अपराध मुक्त कर दिया।

साईबाबा की अपील को उनकी इस दलील के आधार पर स्वीकार किया गया कि सेशन कोर्ट ने बिना केंद्र की अनुमति के उन पर यूएपीए के तहत आरोप तय किए।

पिछली पीठ ने यह भी कहा था कि हालांकि आतंकवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है लेकिन लोकतंत्र लोगों को दिए गए सुरक्षा उपायों का त्याग नहीं सकता।

इसके बाद अप्रैल 2023 में एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति सी.टी. रवि कुमार की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने मुंबई हाईकोर्ट को मामले की दोबारा सुनवाई करने का निर्देश दिया, जो अब बरी के रूप में संपन्न हो गई है।

Exit mobile version