पूर्व मंत्री और दो बार विधायक रहे केवल सिंह पठानिया, जिन्हें ‘बज्जिया’ के नाम से जाना जाता है, का आज सुबह नूरपुर के उनके पैतृक गांव बस्सा-वजीरां में निधन हो गया। राज्य की राजनीति में ईमानदारी और सादगी के प्रतीक पठानिया एक किसान और फल उत्पादक के रूप में एक साधारण जीवन जीते थे, और एक छोटे से स्लेट की छत वाले घर में रहते थे। वे पिछले कुछ महीनों से उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे।
उनका अंतिम संस्कार उनके गांव में पूरे सम्मान के साथ किया गया। पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने पुष्पांजलि अर्पित की, जबकि राज्य सरकार की ओर से नूरपुर तहसीलदार ने पुष्पांजलि अर्पित की। नूरपुर डीएसपी विशाल वर्मा की मौजूदगी में पुलिस की टुकड़ी ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
उनके अंतिम संस्कार में पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक राकेश पठानिया के साथ-साथ पूर्व विधायक राजेश ठाकुर समेत विभिन्न क्षेत्रों के हजारों लोग शामिल हुए। राकेश पठानिया ने उन्हें एक विनम्र और जन-केंद्रित नेता बताया, जिन्होंने सादगी की मिसाल कायम की। विभिन्न सरकारी विभागों के प्रतिनिधियों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनके बेटे राजीव पठानिया ने अंतिम संस्कार की रस्में निभाईं।
पठानिया को कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री सत महाजन का कट्टर प्रतिद्वंद्वी माना जाता था। उन्होंने महाजन के खिलाफ चार विधानसभा चुनाव लड़े, पहली बार 1972 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते। 1977 और 1982 में हारने के बाद वे जनता दल में शामिल हो गए और 1990 में फिर से जीते। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए और 1993 में ज्वालामुखी से चुने गए, वीरभद्र सिंह की कैबिनेट में परिवहन मंत्री के तौर पर काम किया। इस कार्यकाल के बाद वे चुनावी राजनीति से दूर हो गए। ईमानदारी और सादगी की पठानिया की विरासत राज्य की राजनीति में कई लोगों को प्रेरित करती है। — OC
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