June 28, 2025
Entertainment

‘प्रेम रोग’ से ‘द लास्ट कलर’ तक, सिनेमा ने पर्दे पर उतारी ‘सिंगल वूमेन’ की सशक्त कहानी

From ‘Prem Rog’ to ‘The Last Color’, cinema has brought to the screen the powerful story of a ‘single woman’

‘वह क्रूर काल तांडव की स्मृति रेखा सी, वह टूटे तरु की छूटी लता सी दीन’ ये पंक्ति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता ‘विधवा’ से है, जो इन महिलाओं के जीवन के संघर्ष को दिखाती है। साहित्य ही नहीं सिनेमा जगत भी विधवाओं की कहानियों को प्रभावी ढंग से चित्रित करने में सफल रहा है। ‘प्रेम रोग’ से लेकर ‘वॉटर’ तक इनकी लिस्ट काफी लंबी है।

ऐसी फिल्में सामाजिक सुधार, सशक्तीकरण और मानवीय भावनाओं को दिखाती हैं। 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 2010 में इन महिलाओं के अधिकारों, चुनौतियों और सामाजिक स्थिति पर ध्यान आकर्षित करने के लिए शुरू किया था।

भारतीय सिनेमा ने फिल्मों के माध्यम से ऐसी महिलाओं के संघर्ष, सशक्तीकरण और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की कहानियों को प्रभावी ढंग से पर्दे पर उतारा है। इन फिल्मों में ‘सिंगल वूमेन और सिंगल मदर’ के दर्द और संघर्षों के साथ ही हर कदम पर आने वाली चुनौतियों को भी आवाज देने का काम किया गया है।

डायरेक्टर विकास खन्ना के निर्देशन में बनी ‘द लास्ट कलर’ में अभिनेत्री नीना गुप्ता मुख्य किरदार में हैं। साल 2019 में रिलीज हुई यह फिल्म भी विधवाओं के जीवन में रंग घोलने वाली है। फिल्म का अंतिम सीन जिसमें विधवाएं रंगों के त्योहार होली को मनाती हैं, सबसे खास है। फिल्म में एक 70 साल की विधवा और 9 साल के फूल बेचने वाले बच्चे की दोस्ती को खूबसूरती से दिखाया गया है।

नागेश कुकुनूर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘डोर’ की कहानी दो महिलाओं के जीवन पर आधारित है। साल 2006 में रिलीज हुई फिल्म की कहानी में एक महिला का पति जेल में रहता है तो दूसरी विधवा हो जाती है। फिल्म में आयशा टाकिया और गुलपनाग मुख्य किरदार में हैं। आयशा टाकिया ने राजस्थान में रहने वाली एक विधवा महिला का किरदार निभाया है। हालांकि, बाद में एक घटना से दोनों की जिंदगी बदल जाती है।

‘वॉटर’ साल 2005 में रिलीज हुई थी। दीपा मेहता के निर्देशन में बनी फिल्म की पटकथा अनुराग कश्यप ने लिखी है। यह साल 1938 में सेट भारत के एक आश्रम में विधवाओं के जीवन को दिखाती है। एक बाल विधवा आश्रम में अन्य विधवाओं के साथ सामाजिक रूढ़ियों का सामना करती है। खास बात है कि फिल्म पितृसत्तात्मक व्यवस्था की क्रूरता और विधवाओं के प्रति भेदभाव को सामने लाती है। इस फिल्म को ऑस्कर नामांकन मिला था। जॉन अब्राहम और लीजा रे स्टारर फिल्म ‘वॉटर’ में विधवाओं के जीवन को बेहद करीब से दिखाया गया है।

‘प्रेम रोग’ 1982 में आई थी। राज कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म में जहां एक तरफ देवधर (ऋषि कपूर) और मंजूला (पद्मिनी कोल्हापुरे) की खूबसूरत प्रेम कहानी है। वहीं, क्लासिक फिल्म समाज से गंभीर सवाल पूछती और विधवा पुनर्विवाह के संवेदनशील मुद्दे को उठाती है। यह फिल्म विधवाओं के प्रेम और पुनर्विवाह के अधिकार को संवेदनशीलता से दिखाती है, जो उस समय के लिए क्रांतिकारी थी।

Leave feedback about this

  • Service