N1Live Haryana हथीन विधानसभा क्षेत्र में गोत्र पाल करेंगे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला
Haryana

हथीन विधानसभा क्षेत्र में गोत्र पाल करेंगे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला

Gotra Pal will decide the fate of candidates in Hathin assembly constituency

पलवल, 26 अगस्त पलवल जिले का हथीन विधानसभा क्षेत्र संभवतः इस क्षेत्र (फरीदाबाद और पलवल जिले) का एकमात्र क्षेत्र है, जहां जीत या हार के निर्णय में ‘गोत्र पालों’ (खाप) की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।

चूंकि पालों का झुकाव पार्टी के बजाय उम्मीदवार की ओर अधिक होता है, इसलिए उम्मीदवार सभी मुख्य पालों का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि कुल वोट बैंक में इनका हिस्सा करीब 40 प्रतिशत है। – राजनीतिक विश्लेषक

जिले के राजनीतिक और सामाजिक हलकों के सूत्रों का दावा है कि जैसे ही उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू होती है, उम्मीदवार और राजनीतिक दल दोनों ही ‘गोत्र पाल’ की ओर देखने लगते हैं, क्योंकि इन निकायों का समर्थन या विरोध उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला कर सकता है। राजनीतिक विश्लेषक गौरव तेवतिया कहते हैं, ”जहां डागर पाल 22 गांवों में अपनी उपस्थिति के साथ अग्रणी पंचायत या संघ है, वहीं रावत, सहरावत और तेवतिया जैसे अन्य पाल भी इस सीट से किसी भी पार्टी के किसी विशेष उम्मीदवार के चयन और समर्थन के मामले में सक्रिय हो जाते हैं।” उनका कहना है कि अगर पाल किसी उम्मीदवार का समर्थन करते हैं, तो उस उम्मीदवार के जीतने की संभावना काफी बढ़ जाती है। साथ ही उन्होंने कहा कि पालों की नाखुशी ने कई दिग्गजों को जीत से वंचित रखा है। दावा किया जाता है कि हथीन में अब तक हुए कुल 13 चुनावों में से चार बार निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत इस तथ्य का संकेत है।

स्थानीय निवासी महेंद्र सिंह ने बताया, “यहां से जीतने वाले कई उम्मीदवारों की जीत में डागर, रावत और सहरावत के तीन मुख्य पालों ने अहम भूमिका निभाई है।” उन्होंने आगे बताया कि रामजीलाल डागर और प्रवीण डागर डागर पाल से विधायक रह चुके हैं, जबकि हेमराज सहरावत सहरावत पाल से विधायक रह चुके हैं। इनके अलावा, रावत पाल से भगवान सहाय रावत और केहर सिंह रावत भी हथीन विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। सूत्रों का दावा है कि पालों के समर्थन से 2005 में हर्ष कुमार निर्दलीय विधायक चुने गए थे, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरने के बाद वे अगला चुनाव हार गए।

एक विश्लेषक कहते हैं, ‘चूंकि पालों का झुकाव पार्टी के बजाय उम्मीदवार की ओर होता है, इसलिए उम्मीदवार सभी मुख्य पालों का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि कुल वोट बैंक में इनका हिस्सा करीब 40 प्रतिशत है।’ 2019 में भाजपा के प्रवीण डागर की जीत मुख्य रूप से पालों के समर्थन के कारण हुई थी, क्योंकि वह पहले दक्षिणपंथी उम्मीदवार थे, जिन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में गैर-हिंदू मतदाताओं के वर्चस्व के बावजूद जीत हासिल की थी।

पाल फिर से चर्चा में हैं क्योंकि पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों के लिए उनसे समर्थन मांगा है, हालांकि अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। खबर है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल डागर गोत्र से उम्मीदवार उतार सकते हैं।

Exit mobile version