पंजाब के राज्यपाल एवं केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया ने आज डेराबस्सी के मुबारकपुर में आयोजित भव्य जैन भगवती दीक्षा समारोह में भाग लिया।
इस कार्यक्रम से मुमिक्षु मनीषा जैन की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हुई, जिन्होंने सांसारिक मोह-माया त्यागने तथा जैन सिद्धांतों पर आधारित अनुशासित जीवन अपनाने की शपथ ली।
अपने संबोधन में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मैं माननीय मुख्यमंत्री को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने मेरे अनुरोध पर अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर इस पावन अवसर पर उपस्थिति दर्ज कराई। यह न केवल राज्य के दायित्वों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा को भी दर्शाता है। उनकी उपस्थिति हम सभी के लिए प्रेरणा है।”
राज्यपाल ने जप योगी, तप योगी श्री जिनेंद्र मुनि महाराज और डॉ. श्री सुव्रत मुनि महाराज जैसे पूज्य जैन संतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए जैन दीक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि यह सांसारिक इच्छाओं को त्यागने और अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय जैसे आदर्शों को अपनाने का मार्ग है।
राज्यपाल ने भगवान महावीर के महान त्याग और उनके अद्वितीय योगदान का उल्लेख करते हुए कहा, “उनकी शिक्षाएं और सिद्धांत आज भी हमें सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। भगवान महावीर के त्याग और तपस्या के कारण ही जैन धर्म अपनी परंपराओं और मूल्यों के साथ 2,500 वर्षों से अधिक समय से जीवंत बना हुआ है।”
राज्यपाल ने जैन परंपरा के उपवास पर जोर देते हुए इसे आत्म-शुद्धि और आत्म-अनुशासन का एक महत्वपूर्ण साधन बताया। उन्होंने कहा, “उपवास न केवल शरीर को बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है, जो हमें संयम, सहनशीलता और अनुशासन का महत्व सिखाता है।”
उन्होंने भगवान महावीर द्वारा सिखाए गए पाँच महाव्रतों- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर भी प्रकाश डाला। “अहिंसा हमें मन, वाणी या कर्म से किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुँचाना सिखाती है; सत्य हमें सत्य को अपनाने और उसका पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है; अस्तेय हमें सिखाता है कि जो नहीं दिया गया है उसे न लें; ब्रह्मचर्य इंद्रियों पर नियंत्रण पर जोर देता है; और अपरिग्रह हमें आवश्यकता से अधिक संचय करने से बचने के लिए प्रेरित करता है।”
राज्यपाल ने बताया कि ये पाँच महाव्रत हमें सिखाते हैं कि जीवन का असली उद्देश्य भौतिक सुखों में नहीं बल्कि आध्यात्मिक शांति और मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करना है। उन्होंने कहा, “भगवान महावीर की शिक्षाएँ न केवल जैन समुदाय के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रासंगिक हैं।”
कटारिया ने यह भी कहा, “जैन धर्म में दीक्षा केवल बाहरी त्याग नहीं है, बल्कि आंतरिक जागृति का प्रतीक है। यह एक पवित्र कदम है जो आत्मा को उसके सच्चे उद्देश्य और सर्वोच्च सत्ता से जोड़ता है। भगवान महावीर की शिक्षाएं और पांच महान व्रत हमें शांति, करुणा और आध्यात्मिक संतोष से भरा जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं।”
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर चर्चा करते हुए राज्यपाल ने समाज के नैतिक और आध्यात्मिक ढांचे को मजबूत करने में संतों और ऋषियों की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने जैन दर्शन और भारतीय परंपरा में ध्यान, तपस्या और संयम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये शिक्षाएं आज के सामाजिक तनावों और संघर्षों को दूर करने में बेहद प्रासंगिक हैं।
राज्यपाल ने जैन आचार्यों के सदियों पुराने योगदान की सराहना करते हुए कहा, “उन्होंने भारतीय संस्कृति को अमूल्य और शाश्वत मूल्यों से समृद्ध किया है।” उन्होंने कहा कि अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह जैसे जैन सिद्धांत न केवल व्यक्तियों का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि समाज को एक संतुलित और सामंजस्यपूर्ण दिशा भी प्रदान करते हैं।
जैन धर्म में अपनी आस्था व्यक्त करते हुए राज्यपाल ने मुमिक्षु मनीषा जैन को आशीर्वाद दिया तथा उन्हें गुरुणी जी के मार्गदर्शन में दृढ़ संकल्प के साथ आध्यात्मिक पथ पर चलते हुए जैन धर्म का संदेश फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया।
राज्यपाल ने इस भव्य दीक्षा समारोह के आयोजन के लिए मुबारकपुर श्री संघ और उसके सदस्यों को धन्यवाद दिया और जैन समुदाय को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने सभी से भगवान महावीर की शिक्षाओं से प्रेरित होकर सार्थक जीवन जीने का आह्वान किया।
समारोह का समापन राज्यपाल द्वारा मुमिक्षु मनीषा जैन की आध्यात्मिक प्रगति और जैन धर्म के गहन सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए प्रार्थना के साथ हुआ।