हरियाणा के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) ने सभी सिविल सर्जनों को पत्र लिखकर कहा है कि “सभी निदान/नुस्खे बड़े/बोल्ड अक्षरों में लिखे जाएँ”। उन्होंने कहा, “ये निर्देश केवल हस्तलिखित निदान/नुस्खे के मामले में ही लागू होंगे और कंप्यूटरीकृत/टाइप किए गए नुस्खों के प्रचलन में आने के बाद ये लागू नहीं होंगे। इसके अलावा, आपको अपने-अपने ज़िले के आईएमए (भारतीय चिकित्सा संघ) के माध्यम से सभी निजी अस्पतालों को सूचित करने का निर्देश दिया जाता है।”
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा 27 अगस्त को सुनाए गए निर्णय के बाद 27 मई को तथा पुनः 18 सितम्बर को भी इसी प्रकार के निर्देश जारी किए गए।
अदालत बलात्कार और जालसाजी के एक मामले में अग्रिम ज़मानत के मामले की सुनवाई कर रही थी। हरियाणा सरकार द्वारा दायर मेडिको-लीगल रिपोर्ट (एमएलआर) देखने के बाद, न्यायमूर्ति जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा, “…एक शब्द या एक अक्षर भी पढ़ने योग्य नहीं था।” उन्होंने आगे कहा कि एक अन्य मामले में, क्लिनिकल नोट्स की तरह, पर्चे भी पढ़ने योग्य नहीं थे। “ये दोनों ही सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों द्वारा अपने मरीज़ों का इलाज करते हुए लिखे गए थे।”
हालांकि, हरियाणा के वकील ने अदालत को बताया कि हस्तलिखित नोटों को उसी डॉक्टर से पढ़वाने का प्रयास किया जाएगा। बाद में डॉक्टर ने भाषा समझने के बाद अपना हलफनामा दाखिल किया। उन्होंने अदालत को बताया कि महिला की मेडिकल जाँच 19 फ़रवरी, 2024 को हुई थी, लेकिन उसका आखिरी यौन संबंध ढाई महीने पहले, 3 दिसंबर, 2023 को हुआ था, इसलिए नमूना नहीं लिया जा सका।