हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बुधवार को छह मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया तथा सभी लाभ व सुविधाओं के साथ उन्हें तत्काल हटाने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अंतिम आदेश दिया। छह सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें एक कल्पना देवी की जनहित याचिका और दूसरी सतपाल सत्ती सहित 11 भाजपा विधायकों की जनहित याचिका शामिल थी।
हाईकोर्ट ने उस अधिनियम को भी रद्द कर दिया जिसके तहत सीपीएस की नियुक्ति की गई थी। कोर्ट ने सीपीएस की नियुक्ति को सार्वजनिक धन की बर्बादी करार दिया और उन्हें दी जाने वाली सभी सुविधाएं तत्काल वापस लेने का आदेश दिया।
जिन छह सीपीएस की नियुक्ति का आदेश दिया गया है, वे हैं किशोरी लाल (कांगड़ा में बैजनाथ), मोहन लाल ब्राक्टा (शिमला में रामपुर), राम कुमार (सोलन में दून), आशीष बुटेल (कांगड़ा में पालमपुर), सुंदर ठाकुर (कुल्लू) और संजय अवस्ती (सोलन में अर्की)।
छह सीपीएस की नियुक्ति 8 जनवरी, 2023 को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा मंत्रिमंडल में सात मंत्रियों को शामिल करने से ठीक पहले की गई थी।
18 अगस्त 2005 को उच्च न्यायालय ने आठ सीपीएस और चार संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था।
2005 में जिन लोगों को हटाया गया उनमें मुकेश अग्निहोत्री, ठाकुर सिंह भरमौरी, अनीता वर्मा, प्रेम सिंह, टेक चंद, हर्ष वर्धन चौहान, लज्जा राम और हरभजन सिंह शामिल थे। चार संसदीय सचिव जगत सिंह नेगी, सुरिंदर कुमार, सुधीर शर्मा और रघुबीर सिंह थे।
महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा कि राज्य सरकार सीपीएस और पीएस के पद को असंवैधानिक करार देने के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। महाधिवक्ता ने कहा, “चूंकि हिमाचल का अधिनियम असम के अधिनियम से अलग है, जहां भी सीपीएस की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया है, इसलिए राज्य सरकार इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।”
रतन ने कहा कि असम के विपरीत हिमाचल प्रदेश में सीपीएस या पीएस फाइलों पर कोई मंजूरी नहीं दे रहे हैं, जबकि असम में वे मंत्रियों की शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में सीपीएस केवल मंत्रियों को सलाह देते हैं।
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