शिमला, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बुधवार को पिछली सरकार द्वारा तत्काल प्रभाव से दिए गए सभी एक्सटेंशन या पुनर्नियुक्ति को समाप्त करने के सरकारी आदेश के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने पूर्व तहसीलदार ओम प्रकाश शर्मा द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश दिया। शर्मा ने तर्क दिया कि वह 31 मार्च, 2021 को तहसीलदार के पद से सेवानिवृत्त हुए और राज्य ने एक वर्ष के लिए अनुबंध के आधार पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को फिर से नियुक्त करने की नीति बनाई थी, ताकि उनके अनुभव का सार्थक उपयोग किया जा सके।
हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक में तहसीलदार (बैंक रिकवरी) का पद रिक्त था। निदेशक मंडल के अनुमोदन के बाद, याचिकाकर्ता को अनुबंध पर और निश्चित वेतन पर 6 अप्रैल, 2022 को तहसीलदार का पद सौंपा गया था। याचिकाकर्ता ने 13 अप्रैल को कार्यालय ज्वाइन किया था। हालांकि, हाल ही में सरकार बदलने के मद्देनजर, 12 दिसंबर को एक पत्र जारी किया गया, जिसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों को छोड़कर सभी एक्सटेंशन या पुनर्नियुक्ति को तत्काल समाप्त करने का आदेश दिया गया।
पत्र जारी होने के बाद याचिकाकर्ता की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। कार्रवाई से व्यथित शर्मा ने सरकार के आदेश को रद्द करने की प्रार्थना के साथ याचिका दायर की। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्राकृतिक और निष्पक्ष न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन किए बिना याचिकाकर्ता की सेवाएं समाप्त नहीं की जा सकती थीं और कार्रवाई भारत के संविधान के प्रावधानों, विशेष रूप से, अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता के वकील को सुनने और मामले के रिकॉर्ड को देखने के बाद अदालत ने पाया कि कुछ भी उत्तरदाताओं को नीति की समीक्षा करने से नहीं रोकता है। अदालत इस बात से संतुष्ट होने के बाद ही नीति में बदलाव में हस्तक्षेप कर सकती है कि यह तर्कहीन या विकृत है।
पीठ ने कहा, यह व्यापक जनहित में है कि पुनर्नियुक्त की सेवाओं को समाप्त करने की जरूरत है, क्योंकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पास पुनर्नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है।
अदालत ने प्रतिवादियों द्वारा लिए गए निर्णय को अनुचित या मनमाना नहीं पाया और याचिका में कोई दम नहीं पाया और तदनुसार इसे खारिज कर दिया।