हिमाचल प्रदेश ने 1,42,607 मामलों को लेकर, 87,914 मामलों को सुलझाकर तथा 162.5 करोड़ रुपये के निपटान सुनिश्चित करके अपने कानूनी रिकॉर्ड को फिर से लिखा, क्योंकि राष्ट्रीय लोक अदालत राज्य में पहले कभी नहीं देखी गई एक व्यापक निपटान मुहिम में बदल गई।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति सूर्यकांत के मार्गदर्शन और मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया की देखरेख में आयोजित यह अभ्यास राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की राष्ट्रव्यापी पहल का हिस्सा था।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश एवं हिमाचल प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने अदालत में सक्रिय रूप से भाग लिया।
मोटर वाहन अधिनियम संबंधी विवादों का बोलबाला रहा, जिसमें 1,22,608 मामले लिए गए, 78,223 मामले सुलझाए गए और 5.65 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया। फिर भी, आंकड़ों की भरमार से परे, मानवीय कहानियां ही उभर कर सामने आईं।
एक मामले में, एक विधवा अपने किशोर बेटे का हाथ पकड़े हुए, मोटर दुर्घटना दावे में समझौते का चेक पाते ही फूट-फूट कर रोने लगी। उसने धीरे से कहा, “अब कम से कम मेरे बच्चे का भविष्य सुरक्षित है,” और जजों ने भी धीरे से सिर हिलाकर सहमति जताई।
दीवानी और वैवाहिक विवादों से लेकर संपत्ति, बैंकिंग और बीमा से जुड़े मामलों तक, हज़ारों मामलों का निपटारा हो गया। बैंकों, बीमा कंपनियों, सरकारी विभागों और आम जनता ने भारी संख्या में हाथ मिलाया और यह सुनिश्चित किया कि लंबे समय से फाइलों में अटके विवादों का आखिरकार निपटारा हो गया।
अधिकारियों ने कहा कि इस दिन की सफलता ने न केवल लंबित मामलों को निपटाया, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 39ए को भी सार्थकता प्रदान की, जो न्याय तक समान पहुंच का वादा करता है।