गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही हिमाचल सरकार राज्य सरकार पर अपना दावा मजबूती से पेश करेगी। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) पर 4,200 करोड़ रुपये बकाया है, जो कि इसकी वैध 7.19 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
यह मामला पिछले करीब दो दशक से अदालतों में लंबित है। वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन पंजाब व हरियाणा से बकाया राशि प्राप्त करने के प्रयास विफल रहे हैं। अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में 13 सितंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है और हिमाचल के अधिकारों की जोरदार पैरवी करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों का एक दल दिल्ली के लिए रवाना हो गया है।
हिमाचल को अपना बकाया मिलने की उम्मीद है, क्योंकि बीबीएमबी परियोजनाओं में उसका भी हक बनता है। हिमाचल को 7.19 प्रतिशत हिस्से के रूप में अतिरिक्त बिजली मिलनी शुरू हो गई है, लेकिन बकाया अभी भी लंबित है। हिमाचल ने बीबीएमबी की तीन जलविद्युत परियोजनाओं – भाखड़ा बांध (1966), देहर परियोजना (1977) और पौंग बांध (1978) में हिस्सा मांगा था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था, लेकिन आदेश लागू नहीं हुआ। पंजाब व हरियाणा हिमाचल को बकाया राशि देने को तैयार नहीं हैं, लेकिन हिमाचल को मुफ्त बिजली देने पर सहमत हो गए हैं।
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बिजली विभाग के सूत्रों का कहना है कि हिमाचल को मुफ्त बिजली देने की व्यवस्था स्वीकार्य है, लेकिन कुछ अन्य अनसुलझे मुद्दे हैं जिन पर विचार किए जाने की जरूरत है। एक अधिकारी ने कहा, “दोनों राज्यों से लगभग 1,300 करोड़ यूनिट मुफ्त बिजली के हिस्से के साथ, हिमाचल को प्रति वर्ष लगभग 600 रुपये का राजस्व अर्जित करने की उम्मीद है।”
अभी भी जो मुद्दा अनसुलझा है, वह है पंजाब और हरियाणा से बकाया के रूप में प्राप्त बिजली के संचालन और प्रबंधन लागत का भुगतान। यह लागत 10 पैसे से लेकर 67 पैसे प्रति यूनिट के बीच बैठती है। दूसरा मुद्दा हिमाचल में पहले से ही क्रियान्वित बिजली परियोजनाओं की लागत का बंटवारा है, जिनका संचालन बीबीएमबी द्वारा किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने धौलासिद्ध, सुन्नी और लूहरी जलविद्युत परियोजनाओं के लिए पहले किए गए समझौतों में राज्य के हितों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप पिछली भाजपा सरकार पर लगाया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि अगर क्रियान्वयन एजेंसियां अधिक रॉयल्टी और परियोजनाओं के निर्माण के 40 साल बाद हिमाचल को वापस करने पर सहमत नहीं होती हैं, तो वे समझौतों को रद्द करने में संकोच नहीं करेंगे।
बढ़ते कर्ज और अपनी खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए हिमाचल चाहता है कि इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाया जाए। राज्य की कर्ज देनदारी 90,000 करोड़ रुपये को छू रही है, साथ ही केंद्र सरकार से प्राप्त वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) से राजस्व में भी कमी आई है। केंद्र सरकार द्वारा ऋण जुटाने की सीमा और बाहरी सहायता प्राप्त परियोजनाओं के तहत प्राप्त होने वाले धन पर सीमा लगा दिए जाने से स्थिति और जटिल हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट में 13 सितंबर को सुनवाई यह मुद्दा पिछले लगभग दो दशकों से अदालतों में लंबित है। सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में हिमाचल प्रदेश के पक्ष में फैसला सुनाया था।
यह मामला अब 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है हिमाचल को अपना हक मिलने की उम्मीद है, क्योंकि बीबीएमबी परियोजनाओं पर उसका हक बनता है
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