अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार कुलदीप सिंह गर्गज ने सोमवार को कहा कि भारत-पाकिस्तान सीमा से लौटे हिंदू उस एसजीपीसी जत्थे का हिस्सा नहीं थे जो गुरु नानक जयंती मनाने के लिए ननकाना साहिब गया था। उन्होंने उस प्राधिकारी के बारे में भी अनभिज्ञता व्यक्त की जिसने हिंदुओं को भारत-पाकिस्तान सीमा से वापस लौटने को कहा था।
गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व का जश्न मनाने के लिए पाकिस्तान गए 1,900 से अधिक तीर्थयात्री 13 नवंबर को वापस लौटेंगे। जत्थेदार गर्गज ने कहा कि एसजीपीसी जत्थे में 40 से अधिक हिंदू थे , जिनसे उन्होंने पाकिस्तान में बातचीत की और पाया कि वे सेवा में तत्पर हैं । उन्होंने कहा कि गुरु नानक पातशाह का संदेश – “मानवता की एकता” – उनके जन्मस्थान ननकाना साहिब में गुरुद्वारा जन्म स्थान पर दिखाई देता है, जहां हिंदू, मुस्लिम और सिख संयुक्त रूप से सेवा कर रहे हैं
उन्होंने कहा, ‘‘लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह, नौनिहाल सिंह और खड़क सिंह की समाधियों की यात्रा के दौरान मैंने इन स्थानों के जीर्णोद्धार कार्य का अवलोकन किया।’’ वीजा मानदंडों में ढील का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि सिखों के लगातार दौरे से उन्हें गुरुद्वारों के अंतर्गत पंजीकृत लगभग 1.50 लाख एकड़ भूमि पर दावा करने का अवसर मिलेगा।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार सीमा पार से आने वाले सिख श्रद्धालु भी यहां ऐतिहासिक सिख धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए उत्सुक हैं। एसजीपीसी प्रमुख धामी ने जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं से मुलाकात की गुरु तेग बहादुर के 350वें शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में 15 नवंबर से कश्मीर के मटन में आयोजित होने वाले नगर कीर्तन से पहले एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने जम्मू में जम्मू-कश्मीर के हिंदू समुदाय के एक समूह के साथ बैठक की।
उन्हें संबोधित करते हुए धामी ने कहा कि कश्मीरी पंडितों का उल्लेख सिख इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि उनके अनुरोध पर, गुरु साहिब ने मानव अधिकारों के लिए अपना बलिदान दिया। एसजीपीसी वैश्विक स्तर पर नौवें सिख गुरु की शहीदी शताब्दी मना रही है, कश्मीर के गुरुद्वारा साहिब मटन से एक विशेष नगर कीर्तन भी आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस नगर कीर्तन और आनंदपुर साहिब में आयोजित शताब्दी समारोह में हिंदू समुदाय के नेताओं और कश्मीरी पंडितों की भागीदारी महत्वपूर्ण होगी।

