N1Live National भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ नहीं मानते तो ‘मदर इन लॉ ऑफ डेमोक्रेसी’ ही मान लीजिए : सुधांशु त्रिवेदी
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भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ नहीं मानते तो ‘मदर इन लॉ ऑफ डेमोक्रेसी’ ही मान लीजिए : सुधांशु त्रिवेदी

If you don't consider India as 'Mother of Democracy' then consider it as 'Mother in Law of Democracy': Sudhanshu Trivedi

नई दिल्ली, 17 दिसंबर । राज्यसभा में ‘संविधान पर चर्चा’ के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वक्फ बोर्ड, हलाला, चार निकाह, मुस्लिम महिला को मुआवजा नहीं मिलना, मदरसा बोर्ड, तीन तलाक, बालिका से विवाह, हज सब्सिडी जैसे प्रावधानों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया। मैं कहना चाहता हूं कि इन लोगों (विपक्ष) ने सेकुलरिज्म का शिकार करते हुए इस संविधान को आंशिक तौर पर शरिया संविधान बनाने का प्रयास किया। आज मामला मनुस्मृति बनाम संविधान का नहीं है, बल्कि, बाबा साहेब के संविधान की पहचान और संविधान पर शरिया के निशान की है।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि संविधान का पहला वाक्य ‘हम भारत के लोग’ है। यदि ‘हम’ ‘लोग’ और ‘भारत’, इन तीन शब्दों का अर्थ समझ लें तो संविधान निर्माताओं का मूलभाव समझा जा सकता है। लेकिन, अफसोस की बात है कि सर्वाधिक भ्रम इसी विषय को लेकर किया जाता है। पूरे पूर्वी गोलार्ध में सबसे वाइब्रेंट डेमोक्रेसी, एब्सलूट डेमोक्रेसी, कंसिस्टेंट डेमोक्रेसी सिर्फ भारत में है।

उन्होंने संविधान सभा के विशेषज्ञों की चर्चा का हवाला देते हुए बताया कि भारत में गणतांत्रिक व्यवस्था इतिहास के प्रारंभ से थी। उन्होंने आठवीं और नौवीं शताब्दी के चोल साम्राज्य का उदाहरण देते हुए बताया कि तब भी चुने हुए नुमाइंदे होते थे। उन्होंने वैशाली गणराज्य का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर ने इन सारी परंपराओं के चित्र उसमें रखे हैं, तो इससे पता लगता है कि भारत का लोकतंत्र वहां से आता है।

उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए बताया कि चीनी इतिहास में भारत को स्वर्ग का केंद्र कहा जाता था। इसी तरह से प्राचीन जापानी भाषा में भी भारत का नाम स्वर्ग का केंद्र बताया गया है। मध्य पूर्व और अरब में आठवीं और 10वीं शताब्दी में भारत के लिए उस समय के विख्यात लेखकों ने महत्वपूर्ण बातें कही। वहां के लेखकों ने कहा था कि भारत ज्ञान का केंद्र है। वहां से ज्ञान की हवा आती है। जब प्रधानमंत्री भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहते हैं। पीएम संविधान की मूल भावना के अनुरूप ही यह कहते हैं। उन्होंने कुछ हल्के पलों में कहा कि कुछ लोग भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ नहीं मानते हैं। वे इंग्लैंड को लोकतंत्र की जननी के रूप में देखते हैं।

त्रिवेदी ने कहा, ”मैं कहना चाहूंगा कि इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री की मदर इन लॉ हमारे सदन की सदस्य हैं। यदि आप भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ नहीं मानते तो ‘मदर इन लॉ ऑफ डेमोक्रेसी’ ही मान लीजिए। संविधान में लिखे ‘हम भारत के लोग’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब अयोध्या में श्री राम मंदिर का उद्घाटन होना था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण के मंदिरों में गए थे। उनमें से तमिलनाडु का एक श्रीरंगम मंदिर है। यह माना जाता है कि अयोध्या के कुल देवता भगवान विष्णु इस मंदिर में विराजमान हैं। जब श्री राम को विभीषण का राज्याभिषेक व युद्ध करना था, तब उन्होंने उनकी स्थापना वहां की थी। भगवान कृष्ण ने अपना शरीर छोड़ा द्वारिका में और हृदय उनका जगन्नाथ पुरी में है। देश इस प्रकार से जुड़ता है।

उन्होंने कहा कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 16 जनवरी 1952 को एडविना माउंटबेटन को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आंबेडकर के चुनाव हारने पर प्रसन्नता जाहिर की थी। बोलने की आजादी को कम करने के लिए पोस्ट ऑफिस संशोधन विधेयक 1986 था। इसमें सरकार ने प्रावधान किया था कि वह जिसकी चिट्ठी चाहे खोलकर पढ़ सकती है और यदि आपत्तिजनक मिले तो उस पर कार्रवाई कर सकती है। लेकिन, तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस विधेयक को कभी वापस ही नहीं किया, जिसके कारण वह कानून नहीं बन सका। राजीव गांधी के समय में एंटी डिफेमेशन बिल आया, यानी कोई सरकार की आलोचना करे तो कार्रवाई होगी। लेकिन, उस समय प्रबल विरोध के चलते वह नहीं आया। 1967 तक सारे चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की व्यवस्था तब टूटी, जब इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को चुनाव हरवा दिया।

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