आज के ‘सूचना-विस्फोट युग’ में मीडिया साक्षरता के महत्व और विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों पर तथ्य-जांच की आवश्यकता पर जोर देते हुए, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग ने हाल ही में फैक्टशाला विश्वविद्यालय नेटवर्क के तत्वावधान में “मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच” पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।
फैक्टशाला प्रशिक्षक, मीडिया शिक्षक और एमडीयू के पूर्व छात्र डॉ. सतनाम सिंह ने कार्यशाला का संचालन किया। डॉ. सिंह ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की तथा समाज में इसकी अभिन्न भूमिका पर बल दिया।
उन्होंने ऐसी चुनौतियों पर चर्चा की जैसे कि लोगों को सच और गलत सूचना में अंतर करने में कठिनाई होती है, अक्सर ‘विश्लेषण पक्षाघात’ का अनुभव होता है और फ़िशिंग स्कैम जैसे साइबर सुरक्षा खतरों के संपर्क में आते हैं। उन्होंने बताया कि कैसे गलत सूचना से वित्तीय नुकसान होता है और लोगों की धारणा प्रभावित होती है।
सत्र में यह भी बताया गया कि मीडिया साक्षरता किस प्रकार सूचना के अतिभार से निपटने, गलत सूचना से निपटने और मीडिया के प्रभाव को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
डॉ. सिंह ने गलत सूचना और भ्रामक सूचना के बीच अंतर को समझाया, बताया कि लोग गलत सूचना के झांसे में क्यों आ जाते हैं, तथा इससे क्या खतरे पैदा होते हैं, विशेषकर उन स्थितियों में जब इससे तनाव बढ़ सकता है।
उन्होंने झूठी सूचना फैलाने के पीछे के उद्देश्यों, असत्यापित समाचार स्रोतों पर भरोसा करने के जोखिमों और गलत सूचना के वित्तीय और सामाजिक प्रभाव पर प्रकाश डाला। प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष हरीश कुमार ने आलोचनात्मक सोच के महत्व और समाज को आकार देने में इसकी भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने सर सैयद अहमद खान और स्वामी दयानंद सरस्वती के योगदान पर प्रकाश डाला, दोनों ने तर्कसंगत विचारों को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार दयानंद सरस्वती ने सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी तथा महिलाओं के वेद पढ़ने के अधिकार की वकालत की – जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी कार्य था।
उन्होंने सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश का भी उल्लेख किया, जो आलोचनात्मक सोच को दृढ़ता से बढ़ावा देती है। सहायक प्रोफेसर सुनीत मुखर्जी ने कहा कि आज के “पोस्ट-ट्रुथ युग” में तथ्यों की पुष्टि करना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि बिना तथ्यों की जांच किए सूचना प्रसारित करना अनैतिक, गलत और अवांछनीय है। कार्यशाला का समापन डॉ. नवीन कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यशाला का समन्वयन शोधार्थी प्रिया और विनोद गिल ने किया।