करनाल, 27 अगस्त करनाल जिले के पांच निर्वाचन क्षेत्रों में से एक नीलोखेड़ी विधानसभा क्षेत्र का मतदान पैटर्न अनोखा है। अब तक हुए 13 चुनावों में से अधिकतम पांच बार यहां से निर्दलीय उम्मीदवार चुने गए हैं, जो इसके अप्रत्याशित मतदाता वरीयताओं को दर्शाता है।
1967 में पहले चुनाव में भारतीय जनसंघ के शिव राम वर्मा ने जीत हासिल की थी, तब से लेकर अब तक नीलोखेड़ी विधानसभा क्षेत्र में हर चुनाव में अलग परिदृश्य देखने को मिला है।
भारतीय जनसंघ, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (INLD), जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) सभी ने यहां सफलता का स्वाद चखा है। कांग्रेस, INLD और जनसंघ ने दो-दो बार सीट जीती है, जबकि जनता पार्टी और भाजपा को सिर्फ़ एक-एक बार जीत मिली है।
स्वतंत्र उम्मीदवारों की जीत का सिलसिला 1968 में चंदा सिंह की जीत के साथ शुरू हुआ, यह प्रवृत्ति 1982, 1987 और 1991 में अन्य स्वतंत्र उम्मीदवारों के साथ जारी रही। 1972 में भारतीय जनसंघ के शिव राम वर्मा ने यह सीट जीती, जबकि 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की।
1982 में निर्दलीय उम्मीदवार चंदा सिंह जीते, जबकि 1987 में जय सिंह राणा और 1991 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते। राणा का प्रभाव इतना था कि कांग्रेस में शामिल होने के बाद 1996 में उन्होंने फिर से सीट जीत ली।
2000 में इनेलो उम्मीदवार धर्मपाल ने इस सीट पर जीत दर्ज की, जबकि 2005 में कांग्रेस के टिकट पर जय सिंह राणा ने फिर जीत दर्ज की। 2009 में यह विधानसभा क्षेत्र एससी समुदाय के लिए आरक्षित हो गया। 2009 में इनेलो उम्मीदवार मामू राम ने जीत दर्ज की, जबकि 2014 में भाजपा उम्मीदवार भगवान दास कबीरपंथी ने जीत दर्ज की।
2019 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर से निर्दलीय उम्मीदवार धर्मपाल गोंदर ने जीत दर्ज की। भाजपा के भगवान दास कबीरपंथी पर गोंदर की 2,222 वोटों के मामूली अंतर से जीत ने इस बात को उजागर किया कि इस सीट पर मुकाबला कितना कड़ा है। आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही, जिसके उम्मीदवार बंता राम को सिर्फ 19,736 वोट मिले।
इस बीच, चुनाव की तारीख नजदीक आते ही नीलोखेड़ी विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक जंग तेज हो गई है। नीलोखेड़ी, तरौरी, निसिंग जैसे प्रमुख कस्बों और 76 गांवों से मिलकर बने इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल 2,34,017 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें 1,21,570 पुरुष, 112,443 महिलाएं और तीन ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीलोखेड़ी के मतदाता पार्टी से ज़्यादा उम्मीदवार की योग्यता को प्राथमिकता देते हैं, जिसके कारण निर्दलीय उम्मीदवारों को लगातार सफलता मिलती रही है। जय सिंह राणा के नाम चार बार विधायक चुने जाने का रिकॉर्ड है, जिसमें दो बार वे निर्दलीय विधायक भी रहे हैं।
हालांकि, अभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मौजूदा परिदृश्य में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। दयाल सिंह कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रामजी लाल कहते हैं, “आगामी चुनावों में मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही लगता है, क्योंकि दोनों ही पार्टियों के संभावित उम्मीदवार मजबूत हैं। मुकाबला कड़ा हो सकता है।”